"सुलतानपुर जिला": अवतरणों में अंतर
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== ऐतिहासिक दुर्गापूजा महोत्सव ==
यूँ तो '''
इस सबसे अलग यहां की खास बात है गंगा-जमुनी तहजीब। दूसरे इलाकों में जहाँ तनाव की खबरें सुनाई देती हैं, वहीं यहां सभी धर्मों के लोग इस ऐतिहासिक उत्सव को मिल जुल कर मनाते हैं। शायद यही वजह है कि पिछले 6 दशकों से चली आ रही इस अनोखी परम्परा ने इसे खास और ऐतिहासिक बना दिया है। कोलकाता शहर के बाद अगर दुर्गापूजा देखनी हो तो शहर सुलतानपुर आइये। मंदिरों का रूप लिये जगह-जगह बन रहे पंडाल और पंडालों में स्थापित हो रहीं अलग अलग रूपों की प्रतिमायें बरबस आप को अपनी ओर खींच लेंगी। शहर की कोई गली कोई कोना बाकी नहीं जहां इस '''
साल 1959 में नगर के '''
बाहर प्रदेशों के कारीगरों को बुलाकर उनसे विशालकाय और मंदिरनुमा पंडाल बनवाये जाते हैं, उनमें जबरदस्त सजावट की जाती है। बांस की खपच्ची और रंगीन कपड़ों से तैयार पंडाल देखकर असली और नकली का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। जिला प्रशासन की देखरेख में एक पखवारे तक चलने वाली दुर्गापूजा की तैयारियां अब अंतिम दौर में हैं।
देश के दूसरे हिस्सों में दशमी को विसर्जन हो जाता है जबकि यहां उसी दिन से यह महोत्सव परवान चढ़ता है। 'रावण दहन' के बाद जो मेले की शुरुआत होती है तो फिर विसर्जन के बाद ही समाप्त होता है। पांच दिनों तक चलने वाले समारोह के बाद पूर्णिमा को विसर्जन शुरू होता है। नगर की '''
यह प्रतिमायें नगर के विभिन्न मार्गों से होती हुई '''
इस समारोह में दूर दराज से लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं नगर की पूजा समितियां उनके खाने पीने का पूरा प्रबंध करती हैं। जगह-जगह भंडारे चलते हैं। केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के लोग हर पल नजर बनाये रखते हैं। यातायात को सुगम बनाने और शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिये जिला प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है। महीनों पहले से ही जिला प्रशासन भी तैयारियों का जायजा लेना शुरू कर देता है। शोभा यात्रा रूट और विसर्जन स्थल पर पूरी नजर रखी जाती है।
छह दशकों से चला आ रहा यह समारोह केवल हिन्दुओं का पर्व न होकर '''[[सुलतानपुर]]''' का '''
== शिक्षण संस्थान ==
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