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[[चित्र:Tulmul.jpg|thumb|[[श्रीनगर]] के निकट [[खीर भवानी मंदिर]]]]
इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार देवी [[दुर्गा]] ने एक [[भैंस]] रूपी [[असुर]] अर्थात [[महिषासुर]] का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है।<ref name = "नवभारत">{{cite web |url= http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3557373.cms|title= देवताओं के तेज से जन्मीं 'महिषासुर मर्दिनी' |access-date= ३ अक्तूबर २००८ |format= एचटीएम|work= |publisher= नवभारत टाइम्स|pages= १|language=हिन्दी }}</ref>
तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर [[महिषासुर मर्दिनी]] कहलायीं।<ref name = "भास्कर">{{cite web |url= http://www.bhaskar.com/spotlight/dussehra/200710190710191643_dassera_mythological.html|title= दशहरा की पौराणिक कथा|access-date= १९ अक्तूबर २००७ |format= एचटीएम|work= |author= पं.केवल आनंद जोशी |last= जोशी|first= पं.केवल आनंद |authorlink=पं.केवल आनंद जोशी|publisher= भास्कर डॉट कॉम|pages= १|language=हिन्दी }}</ref><ref>[http://www.abhivyakti-hindi.org/kaladirgha/kd9/index.htm देवी दुर्गा-लोकलाओं में चित्र] अभिव्यक्ति पर</ref>
 
=== धार्मिक क्रिया ===