"हयवदन (नाटक)": अवतरणों में अंतर

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== कथानक ==
नाटक की शुरुआत में '''भगवत''' नाम का एक पात्र मंच पर आता है जो कि इस नाटक का कथावाचक भी है , वह गणेश पूजा के माध्यम से इस नाटक के सफल मंचन की कामना करता है I भगवत दर्शकों को नाटक के स्थान '''धर्मपुर''' और वहां के राजा '''धर्मशील''' से अवगत करवाता है I दर्शकों के सामने कुछ सवाल खड़े करता है मनुष्य और ईश्वर की अपूर्णता के बारे में , मनुष्य के सर्व गुण सम्पूर्ण होने के बारे में I अपने सम्बोधन के दौरान वह दो नायकों का परिचय देता है जो कि परस्पर मित्र भी हैं I पहला - '''देवदत्त''' जो कि एक तेज़ मस्तिष्क और बुद्धि का व्यक्ति है जिसने अपने ज्ञान से राज्य के कवियों और पंडितों को भी पीछे छोड़ दिया है I और दूसरा - '''कपिल''' जो कि शारीरिक रूप से काफी शक्तिशाली, सुंदरहै I देवदत्त एक ब्राह्मण का पुत्र है और कपिल एक लौहार का पुत्र है I देवदत्त में शारीरिक सुन्दरताबल की कमी है तो कपिल में बुद्धिज्ञान की कमी है I लेखक के अनुसार देवदत्त का सिर ( मस्तिष्क का ज्ञान ) और कपिल का धड़ ( शारीरिक सौन्दर्यबल ) मिलकर एक सम्पूर्ण पुरुष की कल्पना की जा सकती है I देवदत्त और कपिल की तुलना राम-लक्ष्मण , लव-कुश तथा कृष्ण-बलराम की जोड़ी से करता हैI
 
इसके बाद एक '''अभिनेता ( एक्टर-1 )''' दौड़ताचीखते हुआहुए दौड़कर भगवत की तरफ आता है और उसे बताता है कि उसने एक घोड़ेअजीब प्राणी को देखा है जो इन्सान की तरह बातें करता है Iलेकिन '''हयवदन'''उसका मंचका परसिर आताएक घोड़े का है जिसकाऔर सिरधड़ एक इंसान का हैI लेकिनभगवत शेषउसे शरीरनाटक (धड़)के घोड़ेलिए कातैयार हैहोने Iको वह बताताकहता है किI एकवह बारअभिनेता एक राजकुमारी को एक घोड़ेमंच से प्यार होचला जाता है औरपरन्तु १५कुछ सालदेर बादमें वह घोडामंच आदमीपर काचीखता रूपहुआ धारणवापिस कर लेताआता है लेकिनऔर अबउसके राजकुमारीपीछे उसेवह स्वीकारअजीब नहींप्राणी करतीभी Iआता वहहै आदमीI (एक घोड़ाबार )तो राजकुमारीभगवत को घोड़ी बनने का श्राप दे देतालगता है औरकि वोशायद एककिसी घोड़ीने केघोड़े रूपका मेंनकाब बदलपहना जातीहुआ है I, वह घोड़ीइसे (राजकुमारी)हटाने हयवदनका कोप्रयास जन्म देतीकरता है जो कि आधा आदमी है ( सिर ) और आधाफिर घोड़ाउसे (एहसास धड़होता )है Iकि भगवतउसका हयवदनसिर को कहताअसली है किI वह मातासच (देवी)में कालीआधा केघोड़ा मंदिरहै मेंऔर चलाआधा जायेइंसान औरI इसइसके श्रापबाद (वह आधाप्राणी घोड़ास्वयं -का आधापरिचय इंसान'''हयवदन''' )के सेरूप मुक्तिमें प्राप्तकरता करेहै I
 
'''हयवदन''' अपने जन्म की कहानी सुनाने लगता है I वह बताता है कि एक बार एक राजकुमारी को एक घोड़े से प्यार हो जाता है और १५ साल बाद वह घोडा आदमी का रूप धारण कर लेता है लेकिन अब राजकुमारी उसे स्वीकार नहीं करती I वह आदमी ( घोड़ा ) राजकुमारी को घोड़ी बनने का श्राप दे देता है और वो एक घोड़ी के रूप में बदल जाती है I वह घोड़ी (राजकुमारी) हयवदन को जन्म देती है जो कि आधा आदमी है ( सिर ) और आधा घोड़ा ( धड़ ) I भगवत हयवदन को कहता है कि वह माता (देवी) काली के मंदिर में चला जाये और इस श्राप ( आधा घोड़ा - आधा इंसान ) से मुक्ति प्राप्त करे I