→‎देवार्चन: अनावश्यक हटाया
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
→‎देवार्चन: विषय को विस्तार दिया
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
 
पंक्ति 135:
 
पर समझना होगा कि किसी तपस्वी साधक के द्वारा चढा चोला, भले ही वह देखने में आकर्षक न हो पर प्रभावकारी और फल दायक होता है।
 
एक बड़ी विडंबना यह है कि जिस दिन भगवान का पर्व होता है उस दिन लोगों को दिखाने के लिए एक दिन पहले ही भगवान को सुसज्जित कर दिया जाता है। श्रृंगार होने के कारण उस दिन न तो भगवान का स्नान होता है, न पंचामृत पूजन, न अभिषेक। उस दिन तो बस दर्शनार्थियों को तिलक लगाओ कलावा बांधो ओर प्रसाद वितरण का कार्य मात्र रहता है।
 
कुछ लोग चोला तो उसी दिन चढाते हैं। परंतु इतने विद्वान होते हैं कि पुजनादि कार्य को बिलकुल महत्व नहीं देते। कुछ तो भी अडंग-बडंग पूजा कराते हैं। उनके लिए समंत्र पूजन और मंत्रात्मक् अभीषेक, सूक्तों के शुद्ध पाठ, पाठ के आवर्तनों की संख्यादि का कोई महत्व नहीं होता।
 
यदि तप, साधना, मंत्र, यंत्रादि का महत्व न हो तो भगवान का डेकोरेशन तो कोई एरा गैरा भी भगवा लूंगी पहन कर, कर सकता है। तिलक, चोंटी, जनेऊ से ब्राह्मण या पुजारी बन सकता है, पर ब्राह्मणत्व, दैवत्व साधना,तप और शास्त्रों की सेवा से आता है।