"खुमान रासो": अवतरणों में अंतर

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आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसको नवीं शताब्दी की रचना माना है,क्योंकि इसमें नवीं शती के चित्तौड - नरेश खुमाड़ के युद्धों का चित्रण है। तत्कालीन राजाओं के सजीव वर्णन,उस समय की परिस्थितियों के यथार्थ ज्ञान तथा भाषा आरंभिक हिंदी रूप के प्रयोग से इसी तथ्य के प्रमाण मिलते है। इसके रचयिता दलपतविजय है। इस ग्रंथ की प्रामाणिक हस्तलिखित प्रति पूना के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। यह पांच हजार छंदों का विशाल काव्य ग्रंथ है। राजाओं के युद्धों और विवाहों के सरल वर्णनो से इस काव्य की भावभूमि का विस्तार हुआ है। वीर रस के साथ-साथ श्रृंगार रस की भी प्रधानता है इसमें दोहा,सवैया,कवित्त आदि छंद प्रयुक्त हुए है तथा इसकी भाषा राजस्थानी हिंदी है।

उदाहरण-

 पिउ चित्तौड़ न आविऊ,सावण पहीली तीज।
 जोवै बाट बिरहिणी खिण-खिण अणवै बीज।।
 संदेसो पिण साहिबा, पाछो फिरिय न देह‌।
 पंछी  घाल्याव पिंज्जरे,  छूटण  रो संदेह।।