"गुरबचन सिंह सलारिया": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 35:
 
दिसंबर 1961 में कांगो में [[संयुक्त राष्ट्र शांतिस्थापन|संयुक्त राष्ट्र के ऑपरेशन]] के तहत कांगो गणराज्य में तैनात भारतीय सैनिकों में
श्री सलारिया जी भी शामिल थे। 5 दिसंबर को श्री सलारिया जी की बटालियन को दो बख्तरबंद कारों पर सवार [[कातांगा प्रान्त|पृथकतावादी राज्य कातांगा]] के 150 सशस्त्र पृथकतावादियों द्वारा एलिज़ाबेविले हवाई अड्डे के मार्ग के अवरुद्धीकरण को हटाने का कार्य सौंपा गया। कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया जी 5 दिसम्बर 1961 को एलिजाबेथ विला के गोल चक्कर पर दोपहर की ताक में बैठे थे कि उन्हें हमला करके उस सशस्त्र पृथकतावादियों के व्यूह को तोडऩा है, ताकि फौजें आगे बढ़ सकें। उनकी रॉकेट लांचर टीम ने कातांगा की बख्तरबंद कारों पर हमला किया और नष्ट कर दिया। इस अप्रत्याशित कदम ने सशस्त्र पृथकतावादियों को भ्रमित कर दिया, और श्री सलारिया जी ने महसूस किया कि इससे पहले कि वे पुनर्गठित हो जाएं, उन पर हमला करना सबसे अच्छा होगा। हालांकिउनके उनकीपास सेनाकेवल कीसोलह स्थितिसैनिक अच्छीथे, नहींजबकि थीसामने दुश्मन के सौ जवान थे। फिर भी, उन्होंनेउनका पृथकतावादियोंदल दुश्मन पर हमलाटूट करवापड़ा। दियाआमने-सामने औरमुठभेड़ 40होने लोगोंलगी, कोजिसमें कुकरियोंगोरखा सेपलटन हमलेकी खुखरी ने तहलका मचाना शुरू कर दिया। पृथकतावादियों के सौ में मारसे ४० जवान वहीं ढेर हो गिराया।गए। हमले के दौरान श्री सलारिया जी को गले में दो बार गोली लगी और वह वीर गति को प्राप्त हो गए। बाकी बचे पृथकतावादी अपने घायल और मरे हुए साथियों को छोड़ कर भाग खड़े हुए और इस प्रकार मार्ग अवरुद्धीकरण को साफ़ कर दिया गया। अपने कर्तव्य और साहस के लिए और युद्ध के दौरान अपनी सुरक्षा की उपेक्षा करते हुए कर्तव्य करने के कारण श्री सलारिया जी को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में मरणोपरांत [[परम वीर चक्र]] से सम्मानित किया गया।
 
==प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा==