"ईसाई धर्म": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 14:
 
[[ईसा मसीह]] का जन्म यरूशलेम के बैतलहम गांव में हुआ था। इज़राइल के राजा हेरोदेस जिसका शासन लगभग 4 ई.पू. में था, यहूदियों की नाम लिखाई का आदेश निकाला था। इस वजह से अधिक भीड़ होने की वजह से उनके माता पिता को सराय में जगह नहीं मिली अतः उन्हें एक गौशाले में रात गुज़ारनी पड़ी ईसा का जन्म इसी गौशाले में हुआ था उनकी माता ने सर्दी से बचाने के लिए उन्हें चरनी में रखा।
 
बाइबिल के अनुसार ईसा का जन्म ईश्वर की शक्ति से दाऊद की वंशज एक यहूदी लड़की कुंवारी [[मरियम]] से हुआ था। जिनकी मंगनी यूसुफ के साथ हो गई थी।
राजा हेरोदेस की आज्ञा से जब दो वर्ष तक के सभी बालकों को मार डालने की आज्ञा दी गई तो ईसा के माता पिता उन्हें बचाकर मिस्र भाग गए।
बालक ईसा की बचपन से ही धर्म एवं शास्त्रार्थ में रुचि रहा करती थी।
 
जब वे तीस वर्ष के हुए तो उन्होंने समस्त यहूदिया में ईश्वर का संदेश सुनाना शुरू किया।
उन्होंने गरीब, दुखी व बीमारों की सेवा की तथा लोगों को मिलकर प्रेम से रहने का संदेश दिया।
उनका ज़ोर लोगों के आत्मिक परिवर्तन पर था क्योंकि उस समय तक यहूदियों में कर्मकांड ही महत्वपूर्ण स्थान ले चुके थे एवं जनता सिर्फ धर्मगुरुओं के कहे अनुसार ही काम किया करती थी।
ईसा से प्रभावित होकर उनके शिष्य भी बनने लगे जो जगह जगह घूमकर उनके साथ ही इन सन्देशों को लोगों तक पहुंचाते थे।
 
बाइबिल में इनमें 12 प्रमुख शिष्यों को बताया गया है। ईसा के बाद इन्हीं शिष्यों ने उनके सन्देशों को इज़राएल के बाहर सारी दुनिया तक पहुंचाया जिसने बाद में एक सम्प्रदाय या धर्म का रूप ले लिया।
ईसा की बढ़ती लोकप्रियता व लोगों की एकजुटता से न सिर्फ यहूदी धर्माचार्य बल्कि रोमन शासन भी असुरक्षित महसूस करने लगा।
 
कुछ समय बाद ईसा के पीछे चलने वाली बारह लोगों की मंडली सैकडों लोगों के हजूम में बदल गयी।
यहूदी धर्म के कम होती प्रतिष्ठा व एक नई उभरती क्रांति को समाप्त करने के लिये ईसा के एक शिष्य यहूदा को लालच देकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
ईसा पर मुकदमा चलाया गया कि वह स्वयं को यहूदियों का राजा बतलाता है जो कि रोमन साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह है।
अतः ईसा को लगभग 33 ई. में सूली पर चढ़ा कर मृत्युदंड दे दिया गया।
 
किन्तु उनके शिष्यों द्वारा बढ़ती उनकी शिक्षाओं को रोमन साम्राज्य भी नहीं रोक सका हालांकि उनके सभी शिष्यों की एक एक कर हत्या की गईं।
लेकिन ईसा की बढ़ती शिक्षाएं नहीं रुक सकीं।
एक समय ऐसा भी आया जब वह रोमन साम्राज्य जिसने ईसा को सूली पर चढ़ाया उसी ने ईसाई धर्म को 380 ई. में राजधर्म घोषित कर दिया।
 
बाइबिल के अनुसार ईसा ने अपने जीवन में कई चमत्कार किये तथा मृत्यु के बाद तीसरे दिन वह जी उठे।
बाइबिल के अनुसार ईसा ने अपने जीवन में कई चमत्कार किये तथा मृत्यु के बाद तीसरे दिन वह जी उठे। जी उठने के चालीस दिन बाद वह स्वर्ग चले गए एवं क़यामत के दिन ईसा मसीह फिर वापिस आएंगे।
ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह स्वयं परमेश्वर थे जिन्होंने मनुष्यों को उनके पापों से उद्धार करने के लिए मानव रूप में जन्म लिया एवं अपने प्राणों का बलिदान दिया।
और जो उनपर विश्वास करते हैं वे सभी एक दिन ईश्वर के राज्य व अनंत जीवन के वारिस होंगे।