"आदर्शवाद": अवतरणों में अंतर
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आदर्शवादियों के अनुसार शिक्षा एक ‘चेतना' अथवा 'बौद्धिक प्रक्रिया’ है जो कि बालक में सद्गुणों का विकास कर उसे एक प्राकृतिक प्राणी से आध्यात्मिक प्राणी बनाती हैं। सांस्कृतिक परम्परायें एवं ज्ञान इस क्रिया को सम्पन्न करने का साधन हैं। इस क्रिया का ‘साध्य का लक्ष्य’ छात्र को आत्मानुभूति करने का अवसर प्रदान करना तथा उनका चरित्र निर्माण करना होता है। इस प्रकार आदर्शवादी विचारधारा के अनुसार शिक्षा वह चेतनापूर्ण एवं बौद्धिक प्रक्रिया है जिसमें गुरु के द्वारा शिष्य को आत्मानुभूति करायी जाती है। शिक्षा की इस अवधारणा से पता चलता है कि शिक्षा कोई एकांगी प्रक्रिया नहीं है अपितु दो धु्रवों के मध्य चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें एक धु्रव शिक्षार्थी है जिसकी मूल प्रकृति का परिष्कार किया जाता है तथा दूसरा धु्रव शिक्षक होता है जो बालक की मूल प्रकृति का ‘शोधन’ एवं मार्गान्तरीकरण कर उसे शाश्वत मूल्यों एवं आदर्शों से अवगत कराता है ताकि वह प्राकृतिक प्राणी से आध्यात्मिक प्राणी में परिवर्तित हो सके।
===शिक्षा के उद्देश्य तथा आदर्शवाद में समानता===
आदर्शवादियों के अनुसार मनुष्य-जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मा-परमात्मा के चरम स्वरूप को जानना है, इसी को आत्मानुभूति, आदर्श व्यक्तित्व की प्राप्ति, ईश्वर की प्राप्ति तथा परम आनन्द की प्राप्ति कहा जाता है। आत्मा-परमात्मा के चरम स्वरूप को जानने के लिए आदर्शवादियों के अनुसार मनुष्य को चार सोपान पार करने होते हैं। प्रथम सोपान पर उसे अपने ‘प्राकृतिक स्व’ का विकास करना होता है। दूसरे सोपान पर उसे अपने ‘सामाजिक स्व’ का विकास करना होता है। तीसरे सोपान पर उसे अपने ‘मानसिक स्व’ का विकास करना होता है तथा अन्तिम सोपान पर उसे ‘आध्यात्मिक स्व’ का विकास करना होता है।
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