"दहेज प्रथा": अवतरणों में अंतर

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== हत्याएँ==
देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है और वर्ष 2007 से 2011 के बीच इस प्रकार के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से वर्ष 2012 में दहेज हत्या के 8,233 मामले सामने आए। आंकड़ों का औसत बताता है कि प्रत्येक घंटे में एक महिला दहेज की बलि चढ़ रही है।<ref>http://hindi.webdunia.com/woman-articles/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B9%E0%A4%B0-%E0%A4%98%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A5%87-1-%E0%A4%A6%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%9C-%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-1130901048_1.htm</ref>
 
आज 2019 के दौर में दहेज़ इतना आम समझा जाने लगा है कि , अगर कोई वधु बिना दहेज़ के या बिना वस्तु साथ लिए ससुराल जाती है तो उसको अलग अलग तरह से यातनाएँ दी जाती हैं । यह यातनाएँ कभी शारिरिक तो कभी मानसिक होती हैं । जिस कारण वह सदमे में रहती है । पिछड़े तबके में आज भी बिना दहेज़ के वधु को स्वीकार नहीं क्या जाता । दहेज़ के कारण ही आज भी सबसे अधिक मृत्यु दहेज़ की वजह से ही होती हैं । हाँ ! सन 2012 के बाद से आज 2019 में मृत्यु दर तो कम हुई हैं , पर दहेज़ का लालच ख़त्म नहीं हुआ है।
 
== कानून ==