"ऋग्वेद": अवतरणों में अंतर
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{{सन्दूक ऋग्वेद}}
[[सनातन धर्म]] का सबसे आरम्भिक स्रोत है। इसमें १०२८ [[सूक्त]] और १०६२७ [[मन्त्र]] हैं,
[[ऋक् संहिता]] में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या [[मृत्युंजय मन्त्र]] (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात [[गायत्री मन्त्र]] (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), [[श्री सूक्त]] या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के [[नासदीय-सूक्त]] (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा [[हिरण्यगर्भ सूक्त]] (ऋ०१०/१२१/१-१०) और [[विवाह]] आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। इसके 9 वें मण्डल में सोम देवता का उल्लेख है तथा 10 वें मण्डल में चार वर्णों के बारे में दिया गया है |
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