"धर्म": अवतरणों में अंतर

प्रचीन धर्मो की विश्व उत्पत्ति अंत आकार संचालन का नियम व परमात्मा व महात्मा का स्वरूप भिन्न भिन्न है इसलिए ये पूरी तरह से लोगों के मन की कल्पना है जिसकी जो कल्पना उसका वह धर्म है । हिन्दू === में परमात्मा के तीन प्रमुख स्वरूप है शिव विष्णु ब्राम्हा और इनमें ब्राम्हा ने विश्व बनाया है । जैन ===हिन्दू धर्म की मान्यता पर आधारित है परमात्मा चौबीस तीर्थकर है और यहां विश्व कभी नहीं बना है हिन्दू जैन धर्म के मिथ्क के सच होने के प्रमाण सिर्फ भारत तक सीमित है जैसे तीर्थकरो के जन्म स्थान देवी देवता क
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[[चित्र:MonWheel.jpg|right|thumb|300px|[[धर्मचक्र]] (गुमेत संग्रहालय, पेरिस)]]
इस विश्व का परम् सत्य सम्पूर्ण यही है यही है ।'''धर्म''' का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म ,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को [[गुण]] भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण का अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं है। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है, यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है [[प्रकाश]], उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए [[पानी]], अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है।
प्रचीन धर्मो की विश्व उत्पत्ति अंत आकार संचालन का नियम व परमात्मा व महात्मा का स्वरूप भिन्न भिन्न है इसलिए ये पूरी तरह से लोगों के मन की कल्पना है जिसकी जो कल्पना उसका वह धर्म है ।
 
हिन्दू  === में परमात्मा के तीन प्रमुख स्वरूप है शिव विष्णु ब्राम्हा और इनमें ब्राम्हा ने विश्व बनाया है ।
 
जैन ===हिन्दू धर्म की मान्यता पर आधारित है परमात्मा चौबीस तीर्थकर है और यहां विश्व कभी नहीं बना है
 
हिन्दू जैन धर्म के मिथ्क के सच होने के प्रमाण  सिर्फ भारत तक सीमित है जैसे तीर्थकरो के जन्म स्थान देवी देवता के कथा के घटना स्थल ।
 
बौध्द धर्म == ये परमात्मा नहीं महात्मा को ही सर्वोपरि मानते है पश्चात संस्कृति और भारत के लोग प्रायः गौतम बुद्ध तक ही सीमित है जबकि बौध्द धर्म में मौलिक बुध्द लाॅफिंग बुध्द अमितय बुध्द मिलारेपा अनंत बुध्द जैसे सैकड़ों बुध्द है इनमें विश्व की उत्पत्ति कभी नहीं हुई है व इसका  अंत कभी नहीं होगा कहा गया है ।
 
झेन == पूरी तरह से बौध्द धर्म के विचारों पर आधारित है ।
 
शिंतो == कामी ही सर्वोपरि शक्ति है जिसने दुनिया बनाई ।
 
ताओ == यिंग यांग देवी देवता ही सर्वोच्च शक्ति है ।
 
कन्फ्यूजीयशी ==परमात्मा के बारे में नहीं जीवन जीने के लिए अधिक विचार दिये है ।
 
बौध्द झेन शिंतो ताओ कन्फ्यूजीयशी के कथाओ के घटना स्थल चीन जापान कोरिया थाईलैंड कम्बोडिया आदि पूर्वी एशिया  में है ।
 
पारसी == अंगिरा मज्दा ही परमात्मा उसने ही दुनिया बनाई है ।
 
यहूदी == यहोवा ही ने दुनिया बनाई है वही परमात्मा है ।
 
क्रिश्चियन == गाॅड फादर ही परमात्मा है उसी ने दुनिया बनाई है ।
 
मुस्लिम == आल्लहा ने दुनिया बनाई है वही परमात्मा है ।
 
पारसी यहूदी क्रिश्चियन मुस्लिम के कथाओं के घटना स्थल अफगानिस्तान पाकिस्तान इजरायल  यूरोप अफ्रीका में है ।
 
पारसी यहूदी क्रिश्चियन मुस्लिम में नकारात्मक शक्ति है जो उनके परमात्मा के स्वरूप में मात्र थोड़ा ही कमजोर है ।
 
सिख धर्म == परमात्मा वाहे गुरू है जो निर्गुण निराकार है ये धर्म हिन्दू मुस्लिम की एकता के ऊपर है इसके घटना कर्म पाकिस्तान पंजाब कश्मीर महाराष्ट्र तक अधिक है ।
 
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ये धर्म ऐसी कल्पना है जिसके सच होने के प्रमाण दुनिया में है जैसे इनके कथा के प्रचीन प्रर्थना स्थल इनके इमारत जो मनुष्य जिस धर्म का अनुयायी है उसके लिए विश्व उत्पत्ति अंत आकार संचालन का नियम व परमात्मा व महात्मा का स्वरूप वैसा ही है ।
 
धर्म के साथ प्रचीन सभ्यता सुमेरू सभ्यता माया सभ्यता  इंका सभ्यता पीली नदी सभ्यता मिस्र की सभ्यता सिन्धु घाटी सभ्यता सब एक कथा है ये कहनी है जिनके सच होने के प्रमाण है इसी प्रकार प्रचीन साम्राज्य विक्रमादित्य  मौर्य चोला सिंकन्दर चंगेज खान झाऊ वंश मुगल साम्राज्य मराठा साम्राज्य के राजा महाराजा की कहानी भी मन की कल्पना है ।
 
इसलिए प्रचीन धर्म सभ्यताएं व साम्रज्य को आत्मिक जगत की घटनाएं या फिर परिकल्पना कहते है ।
 
इसी प्रकार आदिवासियों के कई जाति में विश्व उत्पत्ति अंत आकार संचालन का नियम व परमात्मा के विभिन्न स्वरूप है जो पूरी तरह से उन आदिवासीयों के मन की परिकल्पना है प्रायः आदिवासी हिन्दू बौध्द मुस्लिम क्रिश्चियन धर्म के अनुयायी है ।
 
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विज्ञान के नियमों के अनुसार विश्व उत्पत्ति अंत आकार संचालन का नियम पूरी तरह से भ्रमित सिध्दान्त है जैसे धर्म असत्य है वैसा ही विज्ञान असत्य है कही परग्रही नहीं है कभी आदिमानव नहीं थे कभी डायनासोर नहीं थे वह सब भ्रमित घटनाएं है जिसके सच होने के प्रमाण है ।
 
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वास्तविक सत्य == यहां विश्व ना कभी बना है ना कभी खत्म होगा पृथ्वी पूरी तरह से स्थिर है चांद सूर्य तारे ग्रह   होते हुऐ भी नहीं है  कही स्वर्ग नरक नहीं यहाँ पृथ्वी ही विश्व है धर्मो के परमात्मा लोगों के मन की परिकल्पना है और उसकी कथा लोगों के मन की मनगढ़ंत कहनी है जिसका जो धर्म उसके लिए वही कहनी सत्य है ।
 
यहाँ विश्व एक खरब वर्षों के समय चक्र में गतिमान है जिसमें लौह ताम्र रजत स्वर्ण युगों में गतिमान है जिसमें सभी मनुष्यों के एक अरब जन्म है इस विश्व की जनसंख्या प्रन्द्रह अरब है जो सदैव स्थिर रहती है सात अरब स्त्री है सात अरब पुरुष है और एक अरब नपुसंक है जो कभी स्त्री-पुरुष व नपुसंक बनते रहते है ।
 
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इस विश्व में मानव समाज VVIP VIP 1ST 2ND 3RD 4TH NONE CLASS में है जो अपने धर्म या विज्ञान के नियम को सत्य मानकर संसारिक जीवन जी रहे है इनमें अधिकांश लोग सामान्य मनोस्थिति के है जो अपने निजी जीवन के सुख शांति व समृध्दि के लिए प्रयासरत है कुछ अच्छे है जो देश दुनिया शहर गांव के विकास उन्नति शांति के लिए प्रयासरत है बहुत कम पर आत्यधिक दुष्ट है जो स्वार्थी महत्वाकांक्षी और ईर्ष्यालु है जो अपने निजी जरूरतों व लक्ष्य की पूर्ति के लिए देश दुनिया समाज व लोगों को भ्रमित करते है उन्हें दुख देते है समाज में अश्लीलता व भेदभाव फैलाते है ।
 
इस विश्व का परम् सत्य सम्पूर्ण यही है यही है ।'''धर्म''' का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म ,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को [[गुण]] भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण का अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं है। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है, यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है [[प्रकाश]], उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए [[पानी]], अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है।
 
वैदिक काल में "धर्म" शब्द एक प्रमुख विचार प्रतीत नहीं होता है। यह [[ऋग्वेद]] के 1,000 भजनों में एक सौ गुना से भी कम दिखाई देता है जो कि 3,000 साल से अधिक पुराना है।<ref>{{cite web|url=https://amp.scroll.in/article/905466/how-did-the-ramayana-and-mahabharata-come-to-be-and-what-has-dharma-got-to-do-with-it|title=How did the ‘Ramayana’ and ‘Mahabharata’ come to be (and what has ‘dharma’ got to do with it)?}}</ref> 2,300 साल पहले सम्राट [[अशोक]] ने अपने कार्यकाल में इस शब्द का इस्तेमाल करने के बाद, "धर्म" शब्द प्रमुखता प्राप्त की थी। पांच सौ वर्षों के बाद, ग्रंथों का समूह सामूहिक रूप से धर्म-[[शास्त्रों]] के रूप में जाना जाता था, जहां [[धर्म]] सामाजिक दायित्वों के साथ समान था, जो व्यवसाय (वर्णा धर्म), जीवन स्तर (आश्रम धर्म), व्यक्तित्व (सेवा धर्म) पर आधारित थे। , राजात्व (राज धर्म), स्री धर्म और मोक्ष धर्म।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/धर्म" से प्राप्त