"प्रजीवगण": अवतरणों में अंतर

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प्रोटोज़ोआ में श्वसन संस्थान नहीं होता, किंतु ऑक्सीकरण द्वारा ये ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। उत्सर्जन संस्थान की उपस्थिति भी विवादस्पद है। जीवन के लगभग सभी कार्य इसके कोशिकाद्रव्य द्वारा होते हैं। अधिकांश प्रोटोज़ोआ आहार के लिए लघु पौधों, मल और दूसरे प्रोटोज़ोआओं पर निर्भर करते हैं। परजीवी प्रोटोज़ोआ परपोषी के ऊतकों पर रहते हैं। जिन प्रोटोज़ोआओं में क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) होता है, वे पौधों की तरह प्रकाशसंश्लेषण से अपना भोजन बनाते हैं। यूग्लीना (Euglena) और वॉलवॉक्स (volvox) इसके उदाहरण हैं । कुछ प्रोटोज़ोआ अपने शरीर की सतह द्वारा जल में घुले आहार को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार के पोषण को मृतजीवी पोषण (saprozoic nutrition) कहते हैं। कुछ प्रोटोज़ोआ परिस्थिति के अनुसार पादपसमभोजी (holophytic) और मृतजीवी में बदलते रहते हैं, जैसे यूग्लीना को, जो पादपसमभोजी है, यदि अंधकार में रख दिया जाए तो इसका क्लोरोफिल समाप्त हो जाता है और यह मृतजीवी हो जाता है। कुछ प्रोटोज़ोआ प्राणिसम भोजी (holozoic) होते हैं, जो प्रग्रहण (capture) तथा अंतर्ग्रहण (injestin) द्वारा कार्बनिक पदार्थो को खाते हैं।
 
वर्गीकरण - प्रोटोज़ोआ को मगन करने के आधार पर निम्नलिखित पाँच वर्गों में बाँटा गया है : (1) मैस्टिगोफोरा (Mastigophora) या कशाभिक (Flagellates) - इस वर्ग के प्रोटोज़ोआ में चाबुक सदृश एक या अधिक कशाभिका रहती है, जो तैरने में सहायता करती है। इस वर्ग के प्रोटोज़ोआ परजीवी, प्राणिसमभोजी एवं पादपसमभोजी होते हैं। (2) सार्कोडिना (Sarcodina) या राइज़ोपोडा (Rhizopoda) - ये पादाभ (pseudopodium) द्वारा गमन करते तथा भोजन करते हैं। वर्ग-1.राइजोपोडीया 2.पाइरोप्लाज्मिया3.एकटिनोपोडिया(3) स्पोरोज़ोआ (Sporozoa) - इसमें कोई भी चलन अंगक (locomotor organelles) नहीं रहते, क्योंकि इस वर्गअधिवर्ग के प्राणी परजीवी जीवन व्यतीत करते हैं (देखे परजीवजन्य रोग)। ये पुटी के अंदर जनन करते हैं। (4) सिलिएटा (Ciliata) - ये सिलिया के द्वारा भोजन एवं गमन करते हैं। सिलिएटा द्विकेंद्रकी होते हैं, जिनमें से एक दीर्घ केंद्रक तथा दूसरा लघु केंद्रक होता है। इसका संघटन बड़ा विकसित है। (5) सक्टोरिया (Suctoria) - ये शिशु अवस्था में सिलिया द्वारा और वयस्क होने पर स्पर्शकों (tentacles) द्वारा गमन करते हैं और इन्हीं के द्वारा भोजन का अंतर्ग्रहण प्रभावित होता है।
 
आर्थिक महत्व - प्रोटोज़ोआ का जैविक एवं आर्थिक महत्व है। बहुत बड़ी संख्या में प्रोटोज़ोआ पृथ्वी की सतह पर रहते हैं और ये पृथ्वी की उर्वरता के कारक समझे जाते हैं। समुद्र में रहनेवाले प्रोटोज़ोआ समुद्री जीवों के खाने के काम में आते हैं। प्राणिसमभोजी प्रोटोज़ोआ जीवाणुओं का भक्षण कर उनकी संख्या वृद्धि को रोकते हैं। प्रोटोज़ोआ की कुछ जातियाँ पानी में विशिष्ट प्रकार की गंधों के कारक हैं। डिनोब्रियान (Dinobryon) पानी में मछली की तरह की गंध तथा सिन्यूर (Synura) पानी में पके हुए खीरे या ककड़ी की तरह के गंध के कारक हैं।{मलेरिया}}