"जैन धर्म": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:In-jain.gif|right|thumb|[[जैन ध्वज]]]]
'''जिन परम्परा (जैन धर्म)''' विश्व के सबसे प्राचीन [[दर्शन]] या धर्मोंपरम्परा(धर्म) में से एक है। यह भारत की [[श्रमण परम्परा]]का सेएक निकलाप्राचीनतम रूप है तथा इसके प्रवर्तक [[महावीर24 स्वामी]]तीर्थंकर हैं। जैन ग्रन्थों के अनुसार यह धर्म शाश्वत हैजिनधर्म जो अनादि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलेगा। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख साहित्य और विशेषकर [[वैदिकआगम साहित्य]]और पौराणिक साहित्यो में प्रचुर मात्रा में हैं। [[सनातन वैदिक]] दर्शन का प्रभाव भी इसके साहित्य में दिखाई पड़ता है। ऐतिहासिकजैन रूपपद्मपुराण सेमें जैनरामायण(राम धर्मकथा), कीमहाभारत शुरुआतआदि ईसाका पूर्वभी 8वींउल्लेख शताब्दीआता सेहै प्राप्तपरंतु होतीयह है।वाल्मिकी [[श्वेतांबर]]रामायण और [[दिगंबर]]वेदव्यास जैनरचित मतमहाभारत के दोकथा समुदायसे हैं,थोड़ा तथाभिन्न इनकेसा धर्मग्रंथप्रतीत [[आगम]],होते [[षट्खंडागम]] व [[पुराण]] हैं। जैनों के धार्मिक स्थल को [[मन्दिर]] कहा जाता है।हैं
 
[[श्वेतांबर]] व [[दिगंबर]] जिन परम्परा के दो सम्प्रदाय हैं, तथा इनके धर्मग्रंथ [[आगम]], [[षट्खंडागम]] व [[पुराण]] हैं। जैनों के धार्मिक स्थल को [[जिनालय(जैन मंदिर)]] कहा जाता है।
'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। [[अहिंसा]] जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है। जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है। जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता को स्थान नहीं दिया गया है।{{sfn|शास्त्री|२००७|p=८७}}
 
'जैनजिन धर्मपरम्परा' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्मदर्शन'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है [[संस्कृत]] के 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणीतन कोमन जीत लिया और अपनी कायावाणी को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञानआत्मज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वरजिनेन्द्र या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। [[अहिंसा]] जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है। जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है। जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता को स्थान नहीं दिया गया है।{{sfn|शास्त्री|२००७|p=८७}}
 
[[अहिंसा]] जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। इसे बड़ी सख्ती से पालन किया जाता है खानपान आचार नियम मे विशेष रुप से देखा जा सकता है‌।
 
जैन दर्शन में भगवान से कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ताधर्ता नही है। सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है। जैन दर्शन के भगवान कर्ता और नही भोगता नही माने जाते ।जैन दर्शन मे सृष्टिकर्ता को स्थान नहीं दिया गया है। जैन धर्म में अनेक शासन देवी-देवता हैं पर उनकी आराधना को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता । जैन धर्म में तीर्थंकरों जिन्हें जिनदेव,जिनेंद्र या भीतराग भगवान कहां जाता है इनकी आराधना का ही विशेष महत्व है। इन्हीं तीर्थंकरों का अनुसरण कर आत्मबोध, ज्ञान और तन और मन पर विजय पाने का प्रयास किया जाता है। {{sfn|शास्त्री|२००७|p=८७}}
 
== भगवान ==