"जैन धर्म": अवतरणों में अंतर

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[[अहिंसा]] जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। इसे बड़ी सख्ती से पालन किया जाता है खानपान आचार नियम मे विशेष रुप से देखा जा सकता है‌।
 
 
जैन दर्शन में भगवान से कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ताधर्ता नही है। सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है। जैन दर्शन के भगवान कर्ता और नही भोगता नही माने जाते ।जैन दर्शन मे सृष्टिकर्ता को स्थान नहीं दिया गया है। जैन धर्म में अनेक शासन देवी-देवता हैं पर उनकी आराधना को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता । जैन धर्म में तीर्थंकरों जिन्हें जिनदेव,जिनेंद्र या भीतराग भगवान कहां जाता है इनकी आराधना का ही विशेष महत्व है। इन्हीं तीर्थंकरों का अनुसरण कर आत्मबोध, ज्ञान और तन और मन पर विजय पाने का प्रयास किया जाता है। {{sfn|शास्त्री|२००७|p=८७}}
 
== भगवान ==