"जैन धर्म": अवतरणों में अंतर

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[[वैदिक दर्शन परम्परा]] में भी ॠषभदेव का विष्णु के 24 अवतारों में से एक के रूप में संस्तवन किया गया है। [[भागवत]] में ''अर्हन्'' राजा के रूप में इनका विस्तृत वर्णन है।
ऋषभदेव, [[नेमिनाथ|अरिष्टनेमि]] आदि तीर्थंकरों का उल्लेख ऋग्वेदादि में बहुलता से मिलता है, जिससे यह स्वतः सिद्ध होता है कि वेदों की रचना के पहले जैन-धर्म का अस्तित्व [[भारत]] में था। [[विष्णु पुराण]] में श्री ऋषभदेव, [[मनुस्मृति]] में प्रथम जिन (यानी ऋषभदेव) [[स्कंदपुराण]], [[लिंगपुराण]] आदि में बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि का उल्लेख आया है। दीक्षा मूर्ति-सहस्रनाम, वैशम्पायन सहस्रनाम महिम्न स्तोत्र में भगवान जिनेश्वर व अरहंत कह के स्तुति की गई है। योग वाशिष्ठ में श्रीराम ‘जिन’ भगवान की तरह शांति की कामना करते हैं। इसी तरह रुद्रयामलतंत्र में भवानी को जिनेश्वरी, जिनमाता, जिनेन्द्रा कहकर संबोधन किया है। नगर पुराण में कलयुग में एक [[जैन मुनि]] को भोजन कराने का फल कृतयुग में दस ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर कहा गया है। अंतिम दो तीर्थंकर, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी ऐतिहासिक पुरुष है{{sfn|Zimmer|1953|p=182-183}}। महावीर का जन्म ईसा से 540(कहीं पर 599) वर्ष पहले होना ग्रंथों से पाया जाया है। शेष के विषय में अनेक प्रकार की अलौकीक और प्रकृतिविरुद्ध कथाएँ हैं। [[ऋषभदेव]] की कथा [[भागवत पुराण|भागवत]] आदि कई पुराणों में आई है और उनकी गणना हिंदुओं के २४ [[अवतार|अवतारों]] में है। महाभारत अनुशासन पर्व, महाभारत शांतिपर्व, स्कन्ध पुराण, प्रभास पुराण, लंकावतार आदि अनेक ग्रंथो में अरिष्टनेमि का उल्लेख है।
 
हिन्दूपुराण [[श्रीमद्भागवत]] के पाँचवें स्कन्ध के अनुसार मनु के पुत्र प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र हुये जिनके पुत्र राजा नाभि (जैन धर्म में नाभिराय नाम से उल्लिखित) थे। राजा नाभि के पुत्र ऋषभदेव हुये जो कि महान प्रतापी सम्राट हुये। भागवतपुराण अनुसार भगवान ऋषभदेव का विवाह [[इन्द्र]] की पुत्री [[जयन्ती]] से हुआ। इससे इनके सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उनमें [[भरत चक्रवर्ती]] सबसे बड़े एवं गुणवान थे।<ref>श्रीमद्धभागवत पंचम स्कन्ध, चतुर्थ अध्याय, श्लोक ९</ref> उनसे छोटे कुशावर्त, इलावर्त, ब्रह्मावर्त, मलय, केतु, भद्रसेन, इन्द्रस्पृक, विदर्भ और कीकट ये नौ राजकुमार शेष नब्बे भाइयों से बड़े एवं श्रेष्ठ थे। उनसे छोटे कवि, हरि, अन्तरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस और करभाजन थे।
 
[[विष्णु पुराण]] में श्री ऋषभदेव, [[मनुस्मृति]] में प्रथम जिन (यानी ऋषभदेव) [[स्कंदपुराण]], [[लिंगपुराण]] आदि में बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि का उल्लेख आया है।
 
जैन नगर पुराण में कलयुग में एक [[जैन मुनि]] को भोजन कराने का फल सतयुग में दस ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर कहा गया है। अंतिम दो तीर्थंकर, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी ऐतिहासिक पुरुष है{{sfn|Zimmer|1953|p=182-183}}। महावीर का जन्म ईसा से 540(कहीं पर 599) वर्ष पहले होना ग्रंथों से पाया जाया है। शेष के विषय में अनेक प्रकार की अलौकिक और प्रकृतिविरुद्ध कथाएँ हैं।
[[ऋषभदेव]] की कथा [[भागवत पुराण|भागवत]] आदि कई पुराणों में आई है और इनमें विष्णु के २४ [[अवतार|अवतारों]] के रूप में की गई है। महाभारत के अनुशासन पर्व, महाभारत के शांतिपर्व, स्कन्ध पुराण, जैन प्रभास पुराण, जैन लंकावतार आदि अनेक ग्रंथो में अरिष्टनेमि का उल्लेख है।
 
== दर्शन ==