"धर्म": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:MonWheel.jpg|right|thumb|300px|[[धर्मचक्र]] (गुमेत संग्रहालय, पेरिस)]]
'''मानव धर्म प्रसार प्रवर्तक सन्त श्री गंगाराम दास महाराज का मत है कि सत्यस्वरूपा समष्टि हेतु अर्पित कर्तव्यकर्म ही धर्म है। धर्म''' का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म ,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को [[गुण]] भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण का अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं है। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है, यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है [[प्रकाश]], उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए [[पानी]], अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है।
 
वैदिक काल में "धर्म" शब्द एक प्रमुख विचार प्रतीत नहीं होता है। यह [[ऋग्वेद]] के 1,000 भजनों में एक सौ गुना से भी कम दिखाई देता है जो कि 3,000 साल से अधिक पुराना है।<ref>{{cite web|url=https://amp.scroll.in/article/905466/how-did-the-ramayana-and-mahabharata-come-to-be-and-what-has-dharma-got-to-do-with-it|title=How did the ‘Ramayana’ and ‘Mahabharata’ come to be (and what has ‘dharma’ got to do with it)?}}</ref> 2,300 साल पहले सम्राट [[अशोक]] ने अपने कार्यकाल में इस शब्द का इस्तेमाल करने के बाद, "धर्म" शब्द प्रमुखता प्राप्त की थी। पांच सौ वर्षों के बाद, ग्रंथों का समूह सामूहिक रूप से धर्म-[[शास्त्रों]] के रूप में जाना जाता था, जहां [[धर्म]] सामाजिक दायित्वों के साथ समान था, जो व्यवसाय (वर्णा धर्म), जीवन स्तर (आश्रम धर्म), व्यक्तित्व (सेवा धर्म) पर आधारित थे। , राजात्व (राज धर्म), स्री धर्म और मोक्ष धर्म।
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इन साम्राज्य नीति के कारण विश्व का आज वर्तमान का इतिहास है ।
 
== हिन्दू समुदाय ==
धर्म का अर्थ-
{{मुख्य|हिन्दू समुदाय}}
 
वैदिक सनातन धर्म में चार [[पुरुषार्थ]] स्वीकार किए गये हैं जिनमें धर्म प्रमुख है। तीन अन्य पुरुषार्थ ये हैं- अर्थ, काम और मोक्ष।
"धर्म"* संस्कृत भाषा का शब्द हैं. '' धातु से बना हैं. जिसका अर्थ होता है.'धारण करने वाली
इस तरह हम कह सकते हैं कि..... 'चार्यते इति धर्मः ...... अर्थात, *जो थारण किया जाये वह धर्म हैं.
दूसरे शब्दों में लोक परलोक के सुखों की सिद्धि हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना ही धर्म हैं ।
अगर हम इतनी तकनीकी बातों को छोड़ कर सीधे-सीधे कहें तो
हम यह भी कह सकते हैं कि मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पछाति है...वही धर्म है।
मिनी मुनि के मीमांसा दर्शन के दूसरे सूत्र में भी...धर्म के लक्षण का विवरण है...जो बताता है कि. लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु गुणों और कर्मों में प्रवृति की प्रेरणा धर्म का लक्षण
कहलाता है।
साथ ही.. वैदिक साहित्य में धर्म.
जैसे कि
वस्तु के स्वाभाविक गुण तथा कर्तव्यों के अर्थों में भी आया हैं.
जलाना और प्रकाश करना अग्नि का धर्म हैं..और, प्रजा का पालन और क्षण राजा का धर्म हैं।
उसी प्रकार मनुस्मृति में धर्म की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि
*धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचं इन्द्रिय ग्रह *
'धी विद्या सत्य क्रोचे दशक धर्म लक्षण" ६/९
"अर्थात..धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फंसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के दस लक्षण हैं।
दूसरे स्थान पर कहा हैं.
आचार परमो धर्म" १/१०८
अर्थात सदाचार परम धर्म है
(ध्यान रहे कि....'आचार परमो धर्म को ही कुछ स्वार्थी तत्वों ने बदल कर....."अहिंसा परमो धर्म" बना दिया है)
इसी तरह.... महाभारत में भी धर्म को समझाते हुए लिखा गया हैं कि
'धारणाद् धर्ममित्याहु धर्मो धार्यते प्रजा
अर्थात *जो धारण किया जाये और जिसे प्रजाएँ धारण की हुई हैं वह धर्म हैं।
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि वैशेषिक दर्शन के कर्ता महामुनि कणाद ने चर्म का लक्षण बताते हुए कहा है कि.
यतोअभयुध निश्रेयस सिद्धिः स धर्मः
अर्थात जिससे अभ्युदय (लोकोति) ओर निस्प्रेयस (मोक्ष) की सिद्धि होती है. यह धर्म हैं।
जबकि,मजहब का मतलब धर्म के बिलकुल ही विपरीत है. और मजहब किसी एक पीर-पैगम्बर के द्वारा स्थापित और उसी के सिद्धांतों की मान्यता को लेकर बनाए जाते हैं जिसका प्रमुख
मकसद जनकल्याण नहीं बल्कि रक्तपात, अन्धविश्वास, बुद्धि के विपरीत किये जाने वाले पाखंडों आदि. किसी भी प्रकारका प्रोपोगडा कर अपने मजहब में लोगों की संख्या बढ़ाना होता है.
ताकि, वे उस समुदाय के अपने सिद्धांतों के हिसाब से भेडों की तरह हॉक हाक सके...
इसी तरह....संप्रदाय को भी धर्म की संज्ञा देना उचित नहीं है....व्योंकि..संप्रदाय....धर्म और मजहब के अंदर के भाग होते हैं. सिर्फ, उनकी मान्यताओं और दर्शन में अंतर होता है ।
अंत में सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि. एक हिन्दू सनातन धर्म ही उपरोक्त "धर्म"की परिभाषा पर खरा उतरता है... जो हमें,
*चैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फंसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध..आदि के बारे में बताता है...
ना कि. किसी को धर्म परिवर्तन कैसे करवाना है.. अथवा, जेहाद कैसे चलाना है....इस बारे ।
इसीलिए मित्रों... सच को जाने ... क्योकि, सच ही वो प्रकाश है जो.मनहूस सेक्यूलरों द्वारा फैलाये प्रोपोगंडा रूपी इस अन्धकारको दूर कर
हमारे हिन्दू सनातन धर्म के अस्तित्व की रक्षा में सहायक होगा.।
हमेशा एक बात याद रखें कि
न्याय और पाप को सहने वाला भी उतना ही डोपी होता है जितना अन्याय और पाप करने वाला
 
==वैदिक परंपरा(हिंदू) ==
 
वैदिक सनातन धर्म में चार [[पुरुषार्थ]] स्वीकार किए गये हैं जिनमें धर्म प्रमुख है। तीन अन्य पुरुषार्थ ये हैं- अर्थ, काम और मोक्ष।
 
गौतम ऋषि कहते हैं - 'यतो अभ्युदयनिश्रेयस सिद्धिः स धर्म।' (जिस काम के करने से '''अभ्युदय''' और '''निश्रेयस''' की सिद्धि हो वह धर्म है। )
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: दूसरे शब्दों में, जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है। और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है। इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी न करना चाहिए
 
== जैन समुदाय ==
== जिन परम्परा (जैन) ==
[[File:Ahinsa Parmo Dharm.jpg|thumb|[[जिनालय(जैन मंदिर)]] में अंकित: अहिंसा परमॊ धर्मः]]
{{मुख्य|जैन समुदाय}}
[[जैन ग्रंथ]], [[तत्त्वार्थ सूत्र]] में [[दशलक्षण धर्म|१० धर्मों]] का वर्णन है। यह १० धर्म है:{{sfn|जैन|२०११|p=१२८}}
*उत्तम क्षमा
"https://hi.wikipedia.org/wiki/धर्म" से प्राप्त