"नैतिक शिक्षा": अवतरणों में अंतर

छोNo edit summary
छोNo edit summary
पंक्ति 47:
'''अनंत मूल्यों की प्राप्ति –''' सत्यम, शिवम और सुंदरम अनंत मूल्य समझे जाते हैं। ये सबसे अधिक मूल्यवान वस्तुएँ हैं जो स्वतः अपना अस्तित्व रखती है और हमारे आदर एवं निष्ठा की पात्र हैं। हम केवल धर्म और नैतिकता के माध्यम से ही इन मूल्यों को खोजकर और प्राप्त करके अपने जीवन को पूर्ण बना सकते हैं।
 
  '''अच्छे गुणों व आदतों का निर्माण :-'''
 
अर्नेस्ट चेव के अनुसार बालकों को धार्मिक और नैतिक शिक्षा दी जानी इसलिए आवश्यक है, क्योंकि वह उनमें अनेक अच्छे गुणों और आदतों का निर्माण करती है, यथा-उत्तरदायित्व की भावना, सत्य की खोज, उत्तम आदर्शों की प्राप्ति, जीवन-दर्शन का निर्माण, आध्यात्मिक मूल्यों की अभिव्यक्ति इत्यादि।
 
  '''ऐतिहासिक तथ्य की अवहेलना '''
 
मुहीउद्दीन के अनुसार, भारतीय सन 1950 से धार्मिक और नैतिक शिक्षा की माँग करते चले आ रहे हैं। उनकी माँग का आधार यह ऐतिहासिक तथ्य है कि धर्म और नैतिकता का उनके जीवन में अति महत्वपूर्ण स्थान रहा है। उनकी माँग को पूरा न करना, इस ऐतिहासिक तथ्य की अवहेलना करना है।
पंक्ति 57:
‘विश्वविद्यालय शिक्षा-आयोग' के प्रतिवेदन में अंकित ये शब्द अक्षरशः सत्य है, “यदि हम अपनी शिक्षा- संस्थाओं से आध्यात्मिक प्रशिक्षण को निकाल देंगे, तो हम अपने सम्पूर्ण ऐतिहासिक विकास के विरुद्ध कार्य करेंगे।
 
  '''धार्मिक और नैतिक शिक्षा की विषय-सामग्री :-'''
 
भारत में अनेक धर्मों और सम्प्रदायों के व्यक्ति निवास करते हैं। संविधान की 19वीं धारा उनको अपने धर्मों का अनुसरण करने की पूर्ण स्वतंत्रता देती है। गांधीजी के अनुसार “मेरे लिए नैतिकता, सदाचार और धर्म –पर्यायवाची शब्द है। नैतिकता के आधारभूत सिद्धांत सब धर्मों में समान हैं। इसे बच्चों को निश्चित रूप से पढ़ाया जाना चाहिए और इसको पर्याप्त धार्मिक शिक्षा समझा जाना चाहिए।
पंक्ति 92:
 
5.  डिग्री कोर्स के पाठ्यक्रम में संसार के विभिन्न धर्मों के सामान्य अध्ययन को स्थान दिया जाए।
 
इस संदर्भ में निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं।