"यज्ञ": अवतरणों में अंतर
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कर्मकांड लिए [[श्रौतसूत्र]] देखें। गृहस्थ लिए [[हवन]] देखें।
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[[File:YAGYA Mandap (यज्ञ मंडप).jpg|thumb|यज्ञ मंडप]]
यज्ञ,
<poem>
अधियज्ञोअहमेवात्र देहे देहभृताम वर ॥ 4/8 भगवत गीता
शरीर या देह के दासत्व को छोड़ देने का वरण या निश्चय करने वालों में, यज्ञ अर्थात जीव और आत्मा के योग की क्रिया या जीव का आत्मा में विलय, मुझ परमात्मा का कार्य है। ▼
अनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य:
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥ 1/6 भगवत गीता
</poem>
▲शरीर या देह
यज्ञ का अर्थ जबकि कर्मकांड है किन्तु इसकी शिक्षा व्यवस्था में अग्नि और घी के प्रतीकात्मक प्रयोग में पारंपरिक रूचि का कारण अग्नि के भोजन बनाने में, या आयुर्वेद और औषधीय विज्ञान द्वारा वायु शोधन इस अग्नि से होने वाले धुओं के गुण को यज्ञ समझ इस 'यज्ञ' शब्द के प्रचार प्रसार में बहुत सहायक रहे।
== अर्थ ==
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