"भगत सिंह": अवतरणों में अंतर

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== क्रान्तिकारी गतिविधियाँ ==
[[Fileचित्र:Statues of Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev.jpg|thumb|भगत सिंह,राजगुरु एवं सुखदेव ]]
[[Fileचित्र:Bhagat Singh More or Burnpur More- 02.jpg|thumb|भगत सिंह ]]
 
उस समय भगत सिंह करीब बारह वर्ष के थे जब [[जलियाँवाला बाग]] हत्याकाण्ड हुआ था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से १२ मील पैदल चलकर [[जलियाँवाला बाग]] पहुँच गये। इस उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं ? [[गांधी जी]] का [[असहयोग आन्दोलन]] छिड़ने के बाद वे गान्धी जी के अहिंसात्मक तरीकों और क्रान्तिकारियों के हिंसक आन्दोलन में से अपने लिये रास्ता चुनने लगे। गान्धी जी के असहयोग आन्दोलन को रद्द कर देने के कारण उनमें थोड़ा रोष उत्पन्न हुआ, पर पूरे राष्ट्र की तरह वो भी महात्मा गांधी का सम्मान करते थे। पर उन्होंने गांधी जी के अहिंसात्मक आन्दोलन की जगह देश की स्वतन्त्रता के लिये हिंसात्मक क्रांति का मार्ग अपनाना अनुचित नहीं समझा। उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारम्भ किया तथा कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में [[चन्द्रशेखर आजाद]], [[सुखदेव]], [[राजगुरु]] इत्यादि थे। [[काकोरी काण्ड]] में ४ क्रान्तिकारियों को फाँसी व १६ अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि उन्होंने १९२८ में अपनी पार्टी '''नौजवान भारत सभा''' का [[हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन|हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन]] में विलय कर दिया और उसे एक नया नाम दिया [[हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन]]।
 
=== लाला जी की मृत्यु का प्रतिशोध ===
[[Fileचित्र:Pamphlet by HSRA after Saunders murder.jpg|thumb|300px|सॉण्डर्स की हत्या के बाद एचएसआरए द्वारा लगाए गए परचे]]
१९२८ में [[साइमन कमीशन]] के बहिष्कार के लिये भयानक प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में भाग लेने वालों पर अंग्रेजी शासन ने लाठी चार्ज भी किया। इसी लाठी चार्ज से आहत होकर [[लाला लाजपत राय]] की मृत्यु हो गयी। अब इनसे रहा न गया। एक गुप्त योजना के तहत इन्होंने पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट स्काट को मारने की योजना सोची। सोची गयी योजना के अनुसार भगत सिंह और [[राजगुरु]] लाहौर कोतवाली के सामने व्यस्त मुद्रा में टहलने लगे। उधर [[जयगोपाल]] अपनी साइकिल को लेकर ऐसे बैठ गये जैसे कि वो ख़राब हो गयी हो। गोपाल के इशारे पर दोनों सचेत हो गये। उधर [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] पास के डी० ए० lवी० स्कूल की चहादीवारी के पास छिपकर घटना को अंजाम देने में रक्षक का काम कर रहे थे।
 
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== फांसी ==
[[Fileचित्र:BhagatSingh DeathCertificate.jpg|thumb|300px|भगत सिंह का मृत्यु प्रमाण पत्र]]
26 अगस्त, 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। इसके बाद भगत सिंह की फांसी की माफी के लिए प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई परन्तु यह अपील 10 जनवरी, 1931 को रद्द कर दी गई। इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पं. मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने सजा माफी के लिए 14 फरवरी, 1931 को अपील दायर की कि वह अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मानवता के आधार पर फांसी की सजा माफ कर दें। भगत सिंह की फांसी की सज़ा माफ़ करवाने हेतु महात्मा गांधी ने 17 फरवरी 1931 को वायसराय से बात की फिर 18 फरवरी, 1931 को आम जनता की ओर से भी वायसराय के सामने विभिन्न तर्को के साथ सजा माफी के लिए अपील दायर की। यह सब कुछ भगत सिंह की इच्छा के खिलाफ हो रहा था क्यों कि भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ की जाए।
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आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता '''भगत सिंह''' को आज़ादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिन्दगी देश के लिये समर्पित कर दी।
 
उनके जीवन ने कई हिन्दी फ़िल्मों के चरित्रों को प्रेरित किया। BHAGAT SINGH JAISE DESHBHAKT YUGON YUGON MEIN DEKHANE NAHEE MILTE HAI
 
==टिप्पणियाँ==