"शरीयत": अवतरणों में अंतर
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|publisher= न्यूज़१८ हिन्दी
|access-date= 16 julAI 2017
|quote= }}</ref> इस क़ानून की परिभाषा दो स्रोतों से होती है। पहली इस्लाम का धर्मग्रन्थ [[क़ुरआन]] है और दूसरा इस्लाम के पैग़म्बर [[मुहम्मद]] द्वारा दी गई मिसालें
मुसलमान यह तो मानते हैं कि शरीयत [[परमात्मा]] का क़ानून है लेकिन उनमें इस बात को लेकर बहुत अंतर है कि यह क़ानून कैसे परिभाषित और लागू होना चाहिए। [[सुन्नी]] समुदाय में चार भिन्न फ़िक़्ह के नज़रिए हैं और शिया समुदाय में दो। अलग देशों, समुदायों और संस्कृतियों में भी शरीयत को अलग-अलग ढंगों से समझा जाता है। शरीयत के अनुसार न्याय करने वाले पारम्परिक न्यायाधीशों को 'क़ाज़ी' कहा जाता है। कुछ स्थानों पर 'इमाम' भी न्यायाधीशों का काम करते हैं लेकिन अन्य जगहों पर उनका काम केवल अध्ययन करना-कराना और धार्मिक नेता होना है।<ref name="ref70filog">[http://books.google.com/books?id=bCJ9Lwz3QY8C द लीगेसी ऑफ़ सोलोमन]|Lulu.com| {{अंग्रेज़ी}} ISBN 978-2-9527158-4-3, ''... Our imams are prayer leaders, but if fact any respectable Muslim can lead the prayers. The muftis interpret laws of the Sharia whilst the Qazi or Kadi applies the Sharia ...''</ref> इस्लाम के अनुयायियों के लिए शरीयत इस्लामी समाज में रहने के तौर-तरीक़ों, नियमों और कायदों के रूप में क़ानून की भूमिका निभाता है। पूरा इस्लामी समाज इसी शरीयत क़ानून या शरीयत क़ानून के हिसाब से चलता है।
==चित्र दीर्घा==
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