"विश्वविद्यालय": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
विश्व की सबसे प्रथम यूनिवर्सिटी तक्षशिला [भारत] है यह 700 इसा पूर्व [2700 वर्ष पूर्व ]में स्थापित हुई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे। यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था। 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था। तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था। इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था, अपितु यह विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था। विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे। छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे। महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, अश्व-विद्या, मन्त्र-विद्या, विविद्य भाषाएं, शिल्प आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थे। प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार पाणिनी, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट पाठयक्रम था। आज कल की तरह पाठयक्रम की अवधि भी निर्धारित नहीं थी और न कोई विशिष्ट प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी। शिष्य की योग्यता और रुचि देखकर आचार्य उनके लिए अध्ययन की अवधि स्वयं निश्चित करते थे। परंतु कहीं-कहीं कुछ पाठयक्रमों की समय सीमा निर्धारित थी। चिकित्सा के कुछ पाठयक्रम सात वर्ष के थे तथा पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक छात्र को छरू माह का शोध कार्य करना पड़ता था। इस शोध कार्य में वह कोई औषधि की जड़ी-बूटी पता लगाता तब जाकर उसे डिग्री मिलती थी।
 
अनेक शोधों से यह अनुमान लगाया गया है कि यहां बारह वर्ष तक अध्ययन के पश्चात दीक्षा मिलती थी। 500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र था। जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर तथा अंतडिय़ों तक का आपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे। अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे। इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें ज्ञान था। शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे। एक आचार्य के पास अनेक विद्यार्थी रहते थे। इनकी संख्या प्रायरू सौ से अधिक होती थी और अनेक बार 500 तक पहुंच जाती थी। अध्ययन में क्रियात्मक कार्य को बहुत महत्व दिया जाता था। छात्रों को देशाटन भी कराया जाता था। शिक्षा पूर्ण होने पर परीक्षा ली जाती थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय से स्नातक होना उस समय अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था। यहां धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था थी। धनी छात्रा आचार्य को भोजन, निवास और अध्ययन का शुल्क देते थे तथा निर्धन छात्र अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे। शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे। प्राचीन साहित्य से विदित होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढऩे वाले उच्च वर्ण के ही छात्र होते थे। सुप्रसिद्ध विद्वान, चिंतक, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपनी शिक्षा यहीं पूर्ण की थी। उसके बाद यहीं शिक्षण कार्य करने लगे। यहीं उन्होंने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की। इस विश्वविद्यालय की स्थिति ऐसे स्थान पर थी, जहां पूर्व और पश्चिम से आने वाले मार्ग मिलते थे। चतुर्थ शताब्दी ई. पू. से ही इस मार्ग से भारत वर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे। विदेशी आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय को काफी क्षति पहुंचाई। अंततः छठवीं शताब्दी में यह आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया।
प्राचीन काल में [[यूरोप]] के देशों में मान्य अर्थ में कोई विश्वविद्यालय न थे, यद्यपि अनेक महत्वपूर्ण विद्यालय थे, जैसे [[एथेंस]] के दार्शनिक विद्यालय, अथवा [[रोम]] के [[साहित्य]] और [[रीतिशास्त्र]] के विद्यालय, जो उच्च शिक्षा संस्थाएँ थीं। मध्य युग में शिक्षा पर धार्मिक संस्थाओं का नियंत्रण रहा। धार्मिक संस्थाओं द्वारा विद्यालयों की व्यवस्था की जाती थी जिनमें पादरियों को धार्मिक, साहित्यिक एवं वैज्ञानिक विषयों की शिक्षा दी जाती थी। इस युग में [[पेरिस]] का धार्मिक विद्यालय धर्मशिक्षा का एक केंद्र बन गया, तथा सन् 1198 तथा 1215 ई. के बीच [[पेरिस विश्वविद्यालय]] के रूप में परिवर्तित हो गया और उसमें [[धर्मविज्ञान]], [[कला]] तथा [[चिकित्सा]] के प्रभाग बनाए गए। बाद में विशेषज्ञ अध्यापकों और विद्यार्थियों ने मिलकर विश्वविद्यालय चलाए। 12वीं शताब्दी के मध्य के आसपास [[बोलोना विश्वविद्यालय|बोलोना]] में [[कानून]] के विद्यार्थियों के प्रयास से एक कानून विश्वविद्यालय स्थापित किया गया। सन् 1250 ई. के लगभग 'विश्वविद्यालय' (यूनिवर्सिटी) शब्द का प्रयोग नए अर्थ में होने लगा और ये पांडित्यपूर्ण विद्यार्थियों के बजाय शासकों द्वारा अपने राज्यों की राजनीतिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्थापित किए जाने लगे। मध्ययुगीन विश्वविद्यालय 13वीं शताब्दी के मध्य के सर्वोत्कृष्ट समय में बौद्धिक स्वतंत्रता की अद्वितीय अवस्था को प्रकट करते हैं। धन के कारण इनकी प्रगति बाधित नहीं हुई और ये अपने स्वतंत्र अधिकारों को नष्ट करनेवाले प्रयत्नों का विरोध करने में सक्षम रहे। ये अपने युग की संस्कृति को निर्धारित करने में प्रभावशाली बने। [[मध्ययुगीन दर्शन]] का जन्म कुछ महान धार्मिक आंदोलनों के समान महाविद्यालयों में हुआ जिसने मध्य युग के यूरोप को हिला दिया और उसकी एकता को विभाजित कर दिया। इसी 13वीं शताब्दी में महाद्वीपीय यूरोप के प्रभाव से [[इंग्लैंड]] में भी [[ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय|ऑक्सफोर्ड]] और [[कैंब्रिज विश्वविद्यालय]] स्थापित हो चुके थे।