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[[File:ClipperRoute.png|thumb|300px|क्लिप्पर मार्ग (लाल रंग की लकीरें) पर मशीनीकरण युग से पहले की [[पाल]]-युक्त नौकाएँ चीख़तीगरजता चालिसचालीसा हवाओं के प्रयोग से तेज़ी से [[यूरोप]] और [[ऑस्ट्रेलिया]] के बीच यातायात करा करती थीं]]
'''चीख़तेगरजता चालिसचालीसा''' (Roaring Forties) [[पृथ्वी]] के [[दक्षिणी गोलार्ध]] में [[40 डिग्री दक्षिण]] और [[50 डिग्री दक्षिण]] के [[अक्षांश रेखाएँ|अक्षांशों]] (लैटीट्यूड) के बीच चलने वाली शक्तिशाली [[पछुआ पवन]] को कहते हैं। पश्चिम-से-पूर्व चलने वाले यह वायु प्रवाह [[भूमध्य रेखा]] से वायु [[दक्षिणी ध्रुव]] की ओर जाने से और पृथ्वी के [[घूर्णन]] से बनते हैं। पृथ्वी के 40 और 50 डिग्री दक्षिण अक्षांशों के बीच बहुत कम भूमि है और अधिकांश भाग में केवल खुला [[महासागर]] है जिस से इन पवनों को रोकने वाली पहाड़ियाँ या अन्य स्थलाकृतियाँ अनुपस्थित हैं और इनकी शक्ति बढ़ती जाती है।
 
चीख़तीगरजता चालिसचालीसा हवाओं से यहाँ की लहरे भी कभी-कभी तेज़ वायु प्रवाह से उत्तेजित होकर भयंकर ऊँचाई पकड़ लेती हैं। इन लहरों के बावजूद मशीनीकरण के युग से पूर्व [[यूरोप]] से [[ऑस्ट्रेलिया]] जाने वाली नौकाएँ 40 डिग्री से आगे दक्षिण आकर अपने [[पालों]] द्वारा इन गतिशील हवाओं को पकड़कर तेज़ी से पूर्व की ओर जाने का लाभ उठाया करती थीं।<ref>Catchpole, Heather (20 September 2007). "[http://www.abc.net.au/science/articles/2007/09/20/2038604.htm Roaring forties]". In Depth. ABC Science. Retrieved 7 April 2011.</ref><ref> Dear, I. C. B.; Kemp, Peter, eds. (2007). "[http://www.oxfordreference.com/views/ENTRY.html?subview=Main&entry=t225.e2007 Roaring Forties]". The Oxford Companion to Ships and the Sea. Oxford Reference Online, Oxford University Press. ISBN 0-19-860616-8. OCLC 60793921. Retrieved 14 April 2011.</ref>
 
== इन्हें भी देखें ==