"पृथ्वीराज रासो": अवतरणों में अंतर

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राहत कोतेह्िपरिते रोकप्व्केदकेपिपि
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== परिचय ==
पृथ्वीराजरासो रासक परंपरा का एक काव्य है। जैसा इसके नाम से ही प्रकट है, दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट् पृथ्वीराज के जीवन की घटनाओं को लेकर लिखा गया हिंदी का एक ग्रंथ जो चंदवरदाई चंङिसा राव भट्ट का लिखा माना जाता रहा है। पहले इस काव्य के एक ही रूप से हिंदी जगत्‌ परिचित था, जो संयोग से रचना का सबसे अधिक विशाल रूप था इसमें लगभग ग्यारह हजार रूपक आते थे। उसके बाद रचना का एक उससे छोटा रूप कुछ प्रतियों में मिला, जिसमें लगभग साढ़े तीन हजार रूपक थे। उसके भी बाद एक रूप कुछ प्रतियों में प्राप्त हुआ जिसमें कुल रूपकसंख्या बारह सौ से अधिक नहीं थी। तदनंतर दो प्रतियाँ उसकी ऐसी भी प्राप्त हुई जिनमें क्रमश: चार सौ और साढ़े पाँच सौ रूपक ही थे। ये सभी प्रतियाँ रचना के विभिन्न पूर्ण रूप प्रस्तुत करती थीं। रचना के कुछ खंडों की प्रतियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जिनका संबंध उपर्युक्त प्रथम दो रूपों से रहा है। अत: स्वभावत: यह विवाद उठा कि उपर्युक्त विभिन्न पूर्ण रूपों का विकास किस प्रकार हुआ। कुछ विद्वानों ने इससे सर्वथा भिन्न मत प्रकट किया। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा रूप ही रचना का मूल रूप रहा होगा और उसी से उत्तरोत्तर अधिकाधिक छोटे रूप संक्षेपों के रूप में बनाकर प्रस्तुत किए गए होंगे। इन्होंने इसका प्रमाण यह दिया कि रचना का कोई रूप, यहाँ तक कि सबसे छोटा रूप भी, अनैतिहासिकता से मुक्त नहीं है। किंतु इस विवाद को फिर यहीं पर छोड़ दिया गया और इसको हल करने का कोई प्रयास बहुत दिनों तक नहीं किया गया। इसका प्रथम उल्लेखनीय प्रयास 1955 में हुआ। जब एक विद्वान ने पृथ्वीराज रासो के तीन पाठों का आकार संबंध (हिंदी अनुशीलन, जलन-मार्च 1955) शीर्षक लेख लिकर यह दिखाया कि पृथ्वीराज और उसके विपक्ष के बलाबल को सूचित करनेवाली जो संख्याएँ रचना के तीन विभिन्न पाठों : सबसे बड़े (बृहत्‌), उससे छोटे (मध्यम) और उससे भी छोटे (लघु) में मिलती हैं उनमें समानता नहीं है और यदि समग्र रूप से देखा जाय तो इन संख्याओं के संबंध में अत्युक्ति की मात्रा भी उपर्युक्त क्रम में ही उत्तरोत्तर कम मिलती है। यदि ये पाठ बृहत्‌मध्यमलघुलघुतम क्रम में विकसित हुए होते, तो संक्षेप क्रिया के कारण बलाबल सूचक संख्याओं में कोई अंतर न मिलता। इसलिये यह प्रकट है कि प्राप्त रूपों के विकास का क्रम लघुतमलघुमध्यमबृहत्‌ है। प्रबंध की दृष्टि से यदि हम रचना की उक्तिश्रृंखलाओं और छंदश्रंखलाओं तथा प्रसंगश्रृंखलाओं पर ध्यान दें तो वहाँ भी देखेंगे कि ये श्रृंखलाएँ लघुतमलघुमध्यमबृहत्‌ क्रम में ही उत्तरोत्तर अधिकाधिक टूटी हैं और बीच बीच में इसी क्रम से अधिकाधिक छंद और प्रसंग प्रक्षेपकर्ताताओं के द्वारा रखे गए हैं। किंतु रचना का प्राप्त सबसे छोटा (लघुतम) रूप भी इन श्रृंखलात्रुटियों से सर्वथा मुक्त नहीं है, इसलिये स्पष्ट ज्ञात होता है कि 'रासो' का मूल रूप प्राप्त लघुतम रूप से भी छोटा रहा होगा।
 
== कथा ==