"ठाकुर": अवतरणों में अंतर
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छो '''ठाकुर''' एक उपाधि है जो छोटी रियासतों के राजाओं एवं बड़े ज़मीदारों की दी गई थी। ठाकुर शब्द का प्रयोग मध्यकाल में ईश्वर, स्वामी या मन्दिर की प्रतिमा (मूर्ति) के लिए किया जाता था। मुगलकाल में शासकवर्ग ने इसका व्यवहार अपने नाम के साथ करना प्रारम्भ कर दिया। लोध-लोधी राजपूत.चौहान.सोलंकी.परिहार.जादौन.भाटी.तोमर.चन्देल और अन्य राजपूत को ठाकुर की पदवी तथा अधिकार देकर सम्मानित किया था। ठाकुर, परगने का शासक प्रबन्ध और शान्ति सुरक्षा के लिये जिम्मेदार होता था। |
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'''ठाकुर''' एक [[उपाधि]] है जो छोटी रियासतों के राजाओं एवं बड़े ज़मीदारों की दी गई थी।
ठाकुर शब्द का प्रयोग मध्यकाल में ईश्वर, स्वामी या मन्दिर की प्रतिमा (मूर्ति) के लिए किया जाता था। मुगलकाल में शासकवर्ग ने इसका व्यवहार अपने नाम के साथ करना प्रारम्भ कर दिया। [[
राजपूतों में इस समय इसका प्रयोग अधिक है। राजस्थान, इलाहाबाद,जौनपुर आगरा, बरेली कमिश्नरी के राजपूत ठाकुर कहलाते है। [[राजस्थान]] और अवध में तो तमाम राजपूतों की उपाधि ठाकुर है और ठाकुर कह देने से ही राजपूत का पता लग जाता है। जाट लोग मथुरा, आगरा, अलीगढ़, बुलन्दशहर, भरतपुर, धौलपुर के [[सिनसिनवार]], [[राणा]], [[सिकरवार]], भृंगुर, [[लोध-लोधी राजपूत ]], [[चापोत्कट]], [[ठकुरेले]], [[ठेनवा]], [[रावत]] - इन गोजाट ही ठाकुर कहलाते हैं। यू० पी०, बिहार के पूर्वी भागों के राजपूत, ठाकुर के स्थान पर बाबू लिखते हैं। बिहार बंगाल के सुऩार वंशों को भी ठाकुर कहा जाता है। राजपूताना, हरियाणा, मालवा, मध्यप्रदेश, पंजाब में कोई भी जाट अपने को ठाकुर नहीं लिखता है।
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