"जाट": अवतरणों में अंतर

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'''जाट''' उत्तरी [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] की एक क्षत्रिय जाति है।
 
जाट जाति की उत्पत्ति के मुख्य सिद्धांत निम्नानुसार हैं:-
===ज्येष्ठ से जाट की उत्पत्ति===
कुछ इतिहासकार जाट जाति की उत्पत्ति ज्येष्ठ शब्द से मानते है. ऐसी धरणा है कि राजसूय-यज्ञ करने के बाद युधिष्ठिर को 'ज्येष्ठ' घोसित किया गया था. आगे चल कर उनकी सन्तान 'ज्येष्ठ' से 'जेठर' तथा 'जेटर' और फ़िर 'जाट' कहलाने लगे. कुछ अन्य इतिहासकार मानते हैं कि पाण्डवों को महाभारत में विजय दिलाने के कारण श्रीकृष्ण को युधिष्ठिर की सभा में ज्येष्ठ की उपाधि दी गयी थी. अलबरुनी श्रीकृष्ण को जाट मानते हैं. (अलबिरुनी, भारत, पृ. 176). वैसे युधिष्ठिर और कृष्ण दोनों के वंशज चंद्रवंशी क्षेत्रीय में सम्मिलित हैं. कृष्ण के वंशज जो कृष्णिया या कासनिया कहलाते हैं वर्तमान में जाटों के एक गोत्र के रूप में मौजूद हैं.
===शिव से जाट की उत्पत्ति===
एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव की जटाओं से जाट की उत्पत्ति मानी जाती है. यह सिद्धान्त देव संहिता में उल्लेखित है. देव संहिता की इस कहानी में कहा गया है कि शिव के ससुर राजा दक्ष ने हरिद्वार के पास कनखल में एक यज्ञ किया था. सभी देवताओं को तो यज्ञ में बुलाया पर न तो महादेवजी को ही बुलाया और न ही अपनी पुत्री सती को ही निमंत्रित किया. शिव की पत्नि सती ने शिव से पिता के घर जाने के लिये पूछा तो शिव ने कहा- तुम अपने पिता के घर बिना बुलाये भी जा सकती हो. सती जब पिता के घर गयी तो वहां शिव के लिये कोई स्थान निर्धारित नहीं था, न उनके पति का भाग ही निकाला गया है और न उसका ही सत्कार किया गया. उलटे शिवजी का अपमान किया और बुरा भला कहा गया. अपने पति का अपमान देखकर, पिता तथा ब्रह्मा और विष्णु की योजना को ध्वस्त करने के उद्देश्य से उसने यज्ञ-कुण्ड में छलांग लगा कर प्राण दे दिये. इससे क्रुद्ध शिव ने अपने जट्टा से वीरभद्र नामक गण को उत्पन्न किया. वीरभद्र ने जाकर यज्ञ को भंग कर दिया. आगन्तुक राजाओं का मानमर्दन किया. ब्रह्मा और विष्णु को यज्ञ से जाना पडा. वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया. ब्रह्मा और विष्णु शिव को मनाने उनके पास गये. उन्होने शिव से कहा कि आप भी हमारे बराबर हैं. इस समझौते के बाद शिव और उसके गण जाटों को बराबर का दर्जा मिला. शिव ने दक्ष का सिर जोड दिया. कहते हैं कि दक्ष को बकरे का सिर जोडा गया था. यह भी धारणा है कि ब्राह्मण इसी अपमान के कारण जाटों का इतिहास नहीं बताते या इतिहास तोड़-मरोड़ कर लिखते है.
देवसंहिता के कुछ श्लोक निम्न प्रकार हैं-
पार्वत्युवाचः
भगवन सर्व भूतेश सर्व धर्म विदाम्बरः । कृपया कथ्यतां नाथ जाटानां जन्म कर्मजम् ।।12।।
अर्थ- हे भगवन! हे भूतेश! हे सर्व धर्म विशारदों में श्रेष्ठ! हे स्वामिन! आप कृपा करके मेरे तईं जाट जाति का जन्म एवं कर्म कथन कीजिये ।।12।।
का च माता पिता ह्वेषां का जाति बद किकुलं । कस्तिन काले शुभे जाता प्रश्नानेतान बद प्रभो ।।13।।
अर्थ- हे शंकरजी ! इनकी माता कौन है, पिता कौन है, जाति कौन है, किस काल में इनका जन्म हुआ है ? ।।13।।
श्री महादेव उवाच:
श्रृणु देवि जगद्वन्दे सत्यं सत्यं वदामिते । जटानां जन्मकर्माणि यन्न पूर्व प्रकाशितं ।।14।।
अर्थ- महादेवजी पार्वती का अभिप्राय जानकर बोले कि जगन्माता भगवती ! जाट जाति का जन्म कर्म मैं तुम्हारी ताईं सत्य-सत्य कथन करता हूँ कि जो आज पर्यंत किसी ने न श्रवण किया है और न कथन किया है ।।14।।
महाबला महावीर्या, महासत्य पराक्रमाः । सर्वाग्रे क्षत्रिया जट्‌टा देवकल्‍पा दृढ़-व्रता: || 15 ||
अर्थ- शिवजी बोले कि जाट महाबली हैं, महा वीर्यवान और बड़े पराक्रमी हैं क्षत्रिय प्रभृति क्षितिपालों के पूर्व काल में यह जाति ही पृथ्वी पर राजे-महाराजे रहीं । जाट जाति देव-जाति से श्रेष्ठ है, और दृढ़-प्रतिज्ञा वाले हैं || 15 ||
श्रृष्टेरादौ महामाये वीर भद्रस्य शक्तित: । कन्यानां दक्षस्य गर्भे जाता जट्टा महेश्वरी || 16 ||
अर्थ- शंकरजी बोले हे भगवती ! सृष्टि के आदि में वीरभद्रजी की योगमाया के प्रभाव से उत्पन्न जो पुरूष उनके द्वारा और ब्रह्मपुत्र दक्ष महाराज की कन्या गणी से जाट जाति उत्पन्न होती भई, सो आगे स्पष्ट होवेगा || 16 ||
गर्व खर्चोत्र विग्राणां देवानां च महेश्वरी । विचित्रं विस्‍मयं सत्‍वं पौराण कै साङ्गीपितं || 17 ||
अर्थ- शंकरजी बोले हे देवि ! जाट जाति की उत्पत्ति का जो इतिहास है सो अत्यन्त आश्चर्यमय है । इस इतिहास में विप्र जाति एवं देव जाति का गर्व खर्च होता है । इस कारण इतिहास वर्णनकर्ता कविगणों ने जाट जाति के इतिहास को प्रकाश नहीं किया है || 17 ||
यद्यपि यह एक पौराणिक कहानी है परन्तु यह कुछ ऐतिहासिक तथ्यों की तरफ़ संकेत करती है. इससे एक बात तो साफ है कि सृष्टि के आदि में जाट प्राचीनतम क्षेत्रीय थे. वीरभद्र शिव का अंश था जिससे जाट उत्पन्न हुए. उस समय जाट गणों के रूप में संगठित थे. 'शिव के जट' का अर्थ 'शिव के गण' लगाया जाना चाहिए परन्तु पुरोहितों ने इसका अर्थ गलत लगाया 'शिव के जट्टा' अर्थात 'शिव के सिर के बाल'. उपर के विवरण में कारण भी निहित है कि ब्राह्मणों ने क्यों इनका इतिहास छुपाया और क्यों गलत व्याख्या की गयी. इसी बात को स्पस्ट करने के लिए देव संहिता का ऊपर विवरण दिया गया है. जिसने भी शिव जैसे कार्य कर उनका स्तर प्राप्त किया उसे शिव कहा गया. शिव के चित्र का अवलोकन करें तो देखते हैं कि इनके सर पर जटा-जूट और चन्द्रमा हैं तथा गले में नाग है. इसकी ऐतिहासिक विवेचना यह हो सकती है कि शिव ने चंद्रवंशी जाटों एवं नागवंशी क्षेत्रियों को संगठित किया. इन क्षत्रिय वर्गों की शक्तियां शिव में समाहित हो गयी. लिंगपुराण में शिव के 1000 नाम दिए हैं. उनका हर नाम किसी क्षत्रिय वर्ग का प्रतीक है. अनेक जाट गोत्र इनमें से निकले हैं. रामस्वरूप जून ने अपनी जाट इतिहास की पुस्तक में वीरभद्र की वंशावली दी है जिसके अनुसार पुरु की वंशावली में संयति के पुत्र वीरभद्र के वंशज पौनभद्र से पूनिया, कल्हण भद्र से कल्हण, दहीभद्र से दहिया, जखभद्र से जाखड, ब्रह्मभद्र से बमरोलिया आदि जाट गोत्रों की शाखायें चली
 
 
 
===स्वतंत्रता से पूर्व===
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जाट" से प्राप्त