"पत्रकारिता": अवतरणों में अंतर
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==पत्रकारिता का स्वरूप और विशेषतायें==
[[चित्र:Kurukshetra Media.jpg|पाठ=2|अंगूठाकार|<ref>{{Cite journal|last=Chandrabhas|first=N.|last2=Sood|first2=Ajay K.|date=1995-04-01|title=Raman study of pressure-induced phase transitions inRbIO4|url=http://dx.doi.org/10.1103/physrevb.51.8795|journal=Physical Review B|volume=51|issue=14|pages=8795–8800|doi=10.1103/physrevb.51.8795|issn=0163-1829}}</ref>patrakarita]]
सामाजिक सरोकारों तथा सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाआें को समाज के सबसे निचले
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा पाया (स्तम्भ) भी कहा जाता है। पत्रकारिता ने लोकतंत्र में यह महत्त्वपूर्ण स्थान अपने आप नहीं हासिल किया है बल्कि सामाजिक सरोकारों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्त्व को देखते हुए समाज ने ही दर्जा दिया है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त है जब पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निभाती रहे। सार्थक पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी की भूमिका अपनाये।
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