"नवधा भक्ति": अवतरणों में अंतर

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सर्वस्व
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'''स्मरण''': निरंतर अनन्य भाव से परमेश्वर का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना।
 
'''पाद सेवन''': ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्यसर्वस्व समझना।
 
'''अर्चन''': मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना।