"परिवार": अवतरणों में अंतर
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== परिचय एवं महत्व ==
[[संस्कार|सभी समाजों में बच्चों का जन्म और पालन पोषण परिवार में होता है। बच्चों का
Aajad Bishnoi।
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मातृवंशीय और मातृस्थानीय कबीलों में भी शासक वर्ग पुरुष है, किंतु नारी के अधिकारों तथा प्रतिष्ठा की दृष्टि से पितृवंशीय और पितृस्थानीय कबीलों की अपेक्षा इनकी स्थिति प्राय: अच्छी है। कई पितृवंशीय कबीलों में भी नर और नारी का दर्जा लगभग समान है, तथापि अधिकांश कबीलों में पुरुष की अपेक्षा उसका दर्जा हीन है। कबीलों में विवाहविच्छेद और पुनर्विवाह का नियम है और इस संबंध से स्त्री और पुरुष को प्राय: समान अधिकार हैं। वास्तव में अधिकांश कबीले पितृवंशीय हैं और नारी को विवाह के बाद पुरुष के परिवार, कुटुंब और बस्ती में जाना पड़ता है, जहाँ पति के माता, पिता, भाई तथा अन्य रक्त संबंधी और मित्र होते हैं। वहाँ उसे पति के कुटुबं का अंग होकर उसे बड़े लोगों के अनुशासन में रहना होता है और पति के कुलाचार का पालन करना होता है। विवाहविच्छेद की अवस्था में नारी को अपने माता पिता को शरण लेनी पड़ती है। मातृस्थानीय कबीलों में परिवार अधिक स्थायी दिखाई पड़ता है। यह रक्तसंबंधियों का नैसर्गिक समूह मालूम पड़ता है। बहुत कम कबीले ऐसे हैं जहाँ लड़के या लड़कियों को विवाह के पहले ब्रह्मचर्य पालन का नियम हो। कुछ कबीलों में विवाह के पूर्व परीक्षण काल की व्यवस्था होती है। जौनसार बाबर के खसों में अभ्यागतों के स्वागत में परिवार की अविवाहित लड़कियों का संभोग के लिए प्रस्तुत करने की प्रथा है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि परिवार का अस्तित्व नर नारी की वासनातृप्ति के लिए नहीं है, बल्कि परिवार द्वारा उसे मर्यादित किया जाता है।
== भारत में परिवार{{भारत में परिवार|भारत में परिवार=}}==
भारत मुख्यत: [[कृषि]]प्रधान देश है और यहाँ की पारिवारिक रचना प्राय: कृषि की आवश्यकताओं से प्रभावित है। इसके अतिरिक्त भारतीय परिवार की मर्यादाएँ और आदर्श परंपरागत है। किसी अन्य समाज़ में गृहस्थ जीवन की इतनी पवित्रता तथा पिता, पुत्र भाई भाई और पति पत्नी के इतने स्थायी संबंधों का उदाहरण नहीं मिलता। यद्यपि विभिन्न क्षेत्रों, धर्मों और जतियों में सांपत्तिक अधिकार, विवाह तथा विवाहविच्छेद आदि की प्रथा की दृष्टि से अनेक भेद पाए जाते हैं तथापि संयुक्त परिवार का आदर्श सर्वमान्य है। संयुक्त परिवार में संबंधियों का दायरा पति, पत्नी तथा उनकी अविवाहित संतानों से भी अधिक व्यापक होता है। बहुधा उसमें तीन पीढ़ियों और कभी कभी इससे भी अधिक पीढ़ियों के व्यक्ति एक घर में एक ही अनुशासन में और एक रसोईघर से संबंध रखते हुए सम्मिलित संपत्ति का उपभोग करते हैं और परिवार के धार्मिक कृत्यों तथा संस्कारों में भाग लेते हैं। यद्यपि मुसलमानों और ईसाइयों में संपत्ति के नियम भिन्न हैं, तथापि संयुक्त परिवार के आदर्श, परंपराएँ और प्रतिष्ठा के कारण इन सांपत्तिक अधिकारों का व्यावहारिक पक्ष परिवार के संयुक्त रूप के अनुकूल ही रहता है। संयुक्त परिवार का मूल भारत की कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था के अतिरिक्त प्राचीन परंपराओं तथा आदर्श में है। रामायण और महाभारत की गाथाओं द्वारा यह आदर्श जन जन तक पहुँचते हैं। कृषि ने सर्वत्र ही पारिवारिक जीवन की स्थिरता प्रदान की है। अत: भारतीय समाज में परंपरा से उत्पादन कार्य, उपभोग और सुरक्षा की बुनियादी इकाई परिवार है।
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