"दारा शिकोह": अवतरणों में अंतर
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== जीवनी ==
दारा को 1633 में
[[सूफीवाद]] और [[तौहीद]] के जिज्ञासु दारा ने सभी [[हिन्दू]] और [[मुसलमान]] संतों से सदैव संपर्क रखा। ऐसे कई चित्र उपलब्ध हैं जिनमें दारा को हिंदू संन्यासियों और मुसलमान संतों के संपर्क में दिखाया गया है। वह प्रतिभाशाली लेखक भी था। '''सफ़ीनात अल औलिया''' और '''सकीनात अल औलिया''' उसकी सूफी संतों के जीवनचरित्र पर लिखी हुई पुस्तकें हैं। '''रिसाला ए हकनुमा''' (1646) और "तारीकात ए हकीकत" में सूफीवाद का दार्शनिक विवेचन है। "अक्सीर ए आज़म" नामक उसके कवितासंग्रह से उसकी सर्वेश्वरवादी प्रवृत्ति का बोध होता है। उसके अतिरिक्त '''हसनात अल आरिफीन''' और '''मुकालम ए बाबालाल ओ दाराशिकोह''' में [[धर्म]] और [[वैराग्य]] का विवेचन हुआ है। '''मजमा अल बहरेन''' में [[वेदान्त]] और [[सूफीवाद]] के शास्त्रीय शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत है। 52 [[उपनिषद|उपनिषदों]] का [[अनुवाद]] उसने '"सीर-ए-अकबर''' (सबसे बड़ा रहस्य) में किया है।<ref>{{cite web|url=http://www.dailyo.in/politics/mughals-contribution-indian-economy-rich-culture-tourism-british/story/1/19549.html|title=No, Mughals didn't loot India. They made us rich}}</ref>
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