"विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर

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'''चक्रवर्ती विक्रमादित्य सैन परमार''' :- [[उज्जैन]] के राजा थे, जो अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। "विक्रमादित्य" की उपाधि भारतीय इतिहास में बाद के कई अन्य राजाओं ने प्राप्त की थी, जिनमें [[गुप्त राजवंश|गुप्त]] सम्राट [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य|चन्द्रगुप्त द्वितीय]] और [[सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य]] (जो [[हेमु]] के नाम से प्रसिद्ध थे) उल्लेखनीय हैं। राजा विक्रमादित्य नाम, 'विक्रम' और '[[आदित्य]]' के [[समास]] से बना है जिसका अर्थ 'पराक्रम का सूर्य' या 'सूर्य के समान पराक्रमी' है।उन्हें ''विक्रम'' या ''विक्रमार्क'' (विक्रम + अर्क) भी कहा जाता है (संस्कृत में ''अर्क'' का अर्थ [[सूर्य]] है)। भविष्य पुराण व आईने अकबरी के अनुसार विक्रमादित्य सैन परमार वंश के सम्राट थे जिनकी राजधानी उज्जयनी थी ।
राजा विक्रमादित्य के इतिहास पर कई मतभेद है कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यह लोधी राजपूत हैं। लेकिन नवसाहसांकचरित, आएन-ए-अकबरी, विक्रमांकदेव चरित्र, प्राचीन जैन अनुश्रुतियां, भविष्य महापूराण, कल्हण कृत राजतरंगिणी,नेपाल राजवंशावली और तारिके - ए-फरिश् जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों में विक्रमादित्य को प्रमार या परमार अथवा अग्निवंशअग्निवंशीय कहाँ गया है।
महेशचंद्र जैन सील ने स्पष्ट लिखा है कि राजा विक्रमादित्य लोधी थे विक्रमादित्य भारतीय इतिहास का अनूठा 84 कलाओं से पूर्ण कवि दंतिया आज भी जिंदा है वह लोधी ही थे