"वार्ता:विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर

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विक्रमादित्य(संवत् प्रवर्तक).डाॅ. राजबली पांडेय.एम.ए.,डी.लिट्.GOVERNMENT OF INDIA. Department of Archaeological Library.Acc. No.17913 में भी विक्रमादित्य को अग्निवंश के प्रमार क्षत्रिय या परमार या पँवार या पोवार होने की बात संदर्भों के साथ दर्ज हैं। अतः विक्रमादित्य लोधी या रोड वंशीय नहीं थे। इसके कोई प्रमाण नहीं। [[सदस्य:Aniket M Gautam|Aniket M Gautam]] ([[सदस्य वार्ता:Aniket M Gautam|वार्ता]]) 12:29, 6 नवम्बर 2019 (UTC)
 
== विक्रमादित्य अग्निवंश के प्रमार क्षत्रिय थे, वे रोड वंशीय या लोधी नहीं थे। ==
 
विक्रमादित्य(संवत् प्रवर्तक).डाॅ. राजबली पांडेय.एम.ए.,डी.लिट्.GOVERNMENT OF INDIA. Department of Archaeological Library.Acc. No.17913
उपरोक्त ग्रंथ के अध्ययन से यह 100% प्रमाण सहीत सिध्द हो जाता है कि विक्रमादित्य परमार अग्निवंशीय क्षत्रिय थे जिन्हें गर्दभिल्ल के पुत्र, भर्तृहरि के अनुज और परमार या पँवार या पोवार होने के संबोधन और लिखित तथा अभिलेखात्मक प्रमाण मिलते हैं। यह बात सिध्द हो जाती है कि विक्रमादित्य पोवार या पँवार थे। रोड वंशीय या लोधी नहीं थे।
विल्हन की राजतरंगिणी में भी उन्हें अग्निवंश के सम्राट प्रमार कहा गया है।
नवसाहसांकचरित, आएन-ए-अकबरी, विक्रमांकदेव चरित्र, प्राचीन जैन अनुश्रुतियां, भविष्य महापूराण, कल्हण कृत राजतरंगिणी,नेपाल राजवंशावली और तारिके - ए-फरिश्त जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों, अभिलेखों और साहित्यिक स्त्रोतों में विक्रमादित्य को प्रमार या परमार अथवा अग्निवंशीय कहाँ गया है। हिस्ट्री आॅफ राइज आॅफ मोहम्मद पावर इन इण्डिया में लिखा है कि '''पोवार राजा विक्रमजीत (विक्रमादित्य) ने धारानगरी (धार) का प्रसिध्द किल्ला बनवाया था। उज्जयिनी के राजा विक्रमजीत पोवार का इतिहास शानदार धार्मिक और पवित्र है।''' प्राचीन जैन अनुश्रुतियों में विक्रमादित्य को गर्दभिल्ल या गंधर्वसेन प्रमार का पुत्र बताया गया है। तारीख ए फरिश्त नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में विक्रमादित्य पँवार का निम्नलिखित वर्णन प्राप्त होता है - "विक्रमादित्य जाती के पँवार थे। उनका स्वभाव बहुत अच्छा था। उनके विषय में जो कहानियां हिंदूओ में प्रचलित है, उससे स्पष्ट होता है कि उनका वास्तविक स्वरूप कितना महान था। युवा अवस्था में यह राजा बहुत समय तक साधुओं के वेशभूषा में (मालवगण में) भ्रमण करता रहा। उसने बड़ा तपस्वी जीवन व्यतीत किया। थोडे़ ही दिनों में नहरवाला और मालवा दोनों देश उसके अधिपत्य में हो गये। यह निश्चित था कि वह एक महापराक्रमी चक्रवर्ती राजा होगा। राजकाज हाथ में लेते ही उसने न्याय को संसार में ऐसा फैलाया कि अन्याय का चिन्ह बाकी न रहा और साथ ही साथ उदारता भी अनेकों कार्यों में दिखलाईं।" [[सदस्य:Aniket M Gautam|Aniket M Gautam]] ([[सदस्य वार्ता:Aniket M Gautam|वार्ता]]) 12:38, 6 नवम्बर 2019 (UTC)
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