"विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Pro. John Dowson के द्वारा लिखित संदर्भ जोडा टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन उन्नत मोबाइल संपादन |
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन उन्नत मोबाइल संपादन |
||
पंक्ति 30:
यह कहना गलत नहीं होगा कि राजा विक्रमादित्य भारत के राजदूत बन भारतीय संस्कृति को पूरी दुनिया तक पहुंचाने में बेहद कुशल साबित हुए थे. उनकी महानता के गुणगान हम भारतीय सदा गाते रहेंगे. मैं आशा करूंगा कि भविष्य में भी कोई इनके जैसा इंसान भारत में पैदा हो और भारत का नाम और आगे बढाए.
▲<nowiki><ref>कवि जहराम कितनोई कृत सायर-उल-ओकुल. पेज. नं. 315. प्राचीनकाल. मकतब-ए-सुल्तानिया लाइब्रेरी </ref></nowiki>
Line 41 ⟶ 40:
कहा जाता है कि मालवा में विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि का शासन था। भर्तृहरित के शासन काल में शको का आक्रमण बढ़ गया था। भर्तृहरि ने वैराग्य धारण कर जब राज्य त्याग दिया तो विक्रम सेना ने शासन संभाला और उन्होंने ईसा पूर्व 57-58 में सबसे पहले शको को अपने शासन क्षेत्र से बहार खदेड़ दिया। इसी की याद में उन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत कर अपने राज्य के विस्तार का आरंभ किया। विक्रमादित्य ने भारत की भूमि को विदेशी शासकों से मुक्ति कराने के लिए एक वृहत्तर अभियान चलानाय। कहते हैं कि उन्होंने अपनी सेना की फिर से गठन किया। उनकी सेना विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना बई गई थी, जिसने भारत की सभी दिशाओं में एक अभियान चलाकर भारत को विदेशियों और अत्याचारी राजाओं से मुक्ति कर एक छत्र शासन को कायम किया।
<ref>{{Cite book|title=गीता प्रेस गोरखपुर भविष्य पुराण|last=|first=|publisher=गीता प्रेस गोरखपुर|year=|isbn=|location=|pages=245,246.}}</ref>>गीता प्रेस गोरखपुर, भविष्य पुराण. पृष्ठ. क्र. 245<ref>{{Cite book|title=राजतरंगिणी|last=|first=|publisher=कल्हन|year=|isbn=|location=|pages=}}</ref><ref>
== विक्रमादित्य की पौराणिक कथा ==
|