"विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर

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कहा जाता है कि मालवा में विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि का शासन था। भर्तृहरित के शासन काल में शको का आक्रमण बढ़ गया था। भर्तृहरि ने वैराग्य धारण कर जब राज्य त्याग दिया तो विक्रम सेना ने शासन संभाला और उन्होंने ईसा पूर्व 57-58 में सबसे पहले शको को अपने शासन क्षेत्र से बहार खदेड़ दिया। इसी की याद में उन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत कर अपने राज्य के विस्तार का आरंभ किया। विक्रमादित्य ने भारत की भूमि को विदेशी शासकों से मुक्ति कराने के लिए एक वृहत्तर अभियान चलानाय। कहते हैं कि उन्होंने अपनी सेना की फिर से गठन किया। उनकी सेना विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना बई गई थी, जिसने भारत की सभी दिशाओं में एक अभियान चलाकर भारत को विदेशियों और अत्याचारी राजाओं से मुक्ति कर एक छत्र शासन को कायम किया।
 
<ref>{{Cite book|title=गीता प्रेस गोरखपुर भविष्य पुराण|last=|first=|publisher=गीता प्रेस गोरखपुर|year=|isbn=|location=|pages=245,246.}}</ref><ref>गीता प्रेस गोरखपुर, भविष्य पुराण. पृष्ठ. क्र. 245</ref><ref>{{Cite
book|title=राजतरंगिणी|last=|first=|publisher=कल्हन|year=|isbn=|location=|pages=}}</ref><ref>Kalhan's Raajataranginii.stein.</ref>{{Cite
book|title=Kalhan's Raajataranginii.stein.|last=|first=|publisher=stein|year=|isbon=|location=|pages=}}</ref>
ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रंथ ज्योतिविर्दाभरण में सम्राट शकारि विक्रमादित्य के रोम विजय का वर्णन आता है -
'''यो रुमदेशधिपति शकेश्वरं जित्वा गृहीत्वोज्जयिनी महाहवे ।
आनीय संभ्राम्य मुमोचयत्यहो स विक्रमार्कः समस हयाचिक्रमः ॥'''
यह श्लोक स्पष्टतः यह बता रहा है कि रुमदेशधिपति रोम देश के स्वामी शकराज (विदेशी राजाओं को तत्कालीन भाषा में शक ही कहते थे, तब उस काल में शकों के आक्रमण से भारत त्रस्त था)
 
== विक्रमादित्य की पौराणिक कथा ==