"विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर

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<ref>{{Cite book|title=गीता प्रेस गोरखपुर भविष्य पुराण|last=|first=|publisher=गीता प्रेस गोरखपुर|year=|isbn=|location=|pages=245,246.}}</ref><ref>गीता प्रेस गोरखपुर, भविष्य पुराण. पृष्ठ. क्र. 245</ref><ref>{{Cite
book|title=राजतरंगिणी|last=|first=|publisher=कल्हन|year=|isbn=|location=|pages=}}</ref><ref>Kalhan's Raajataranginii.stein.</ref>
 
ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रंथ ज्योतिविर्दाभरण में सम्राट शकारि विक्रमादित्य के रोम विजय का वर्णन आता है -
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यह श्लोक स्पष्टतः यह बता रहा है कि रुमदेशधिपति रोम देश के स्वामी शकराज (विदेशी राजाओं को तत्कालीन भाषा में शक ही कहते थे, तब उस काल में शकों के आक्रमण से भारत त्रस्त था) को पराजित कर विक्रमादित्य ने बंदी बना लिया था और उसे उज्जैनी नगर में घुमा कर छोड़ दिया था।
<ref>ज्योतिविर्दाभरण.22/17.</ref>
 
सम्राट विक्रम ने रोम के शासक '''जुलियस सीजर''' को भी हराकर उसे बंदी बनाकर उज्जेन की सड़कों पर घुमाया था.
 
टिपण्णी यह है कि -
 
'''कालिदास-ज्योतिर्विदाभरण-अध्याय२२-ग्रन्थाध्यायनिरूपणम्-'''
 
'''श्लोकैश्चतुर्दशशतै सजिनैर्मयैव ज्योतिर्विदाभरणकाव्यविधा नमेतत् ॥ᅠ२२.६ᅠ॥'''
 
'''विक्रमार्कवर्णनम्-वर्षे श्रुतिस्मृतिविचारविवेकरम्ये श्रीभारते खधृतिसम्मितदेशपीठे।'''
 
'''मत्तोऽधुना कृतिरियं सति मालवेन्द्रे श्रीविक्रमार्कनृपराजवरे समासीत् ॥ᅠ२२.७ᅠ॥'''
 
'''नृपसभायां पण्डितवर्गा-शङ्कु सुवाग्वररुचिर्मणिरङ्गुदत्तो जिष्णुस्त्रिलोचनहरो घटखर्पराख्य।'''
 
'''अन्येऽपि सन्ति कवयोऽमरसिंहपूर्वा यस्यैव विक्रमनृपस्य सभासदोऽमो ॥ᅠ२२.८ᅠ॥'''
 
'''सत्यो वराहमिहिर श्रुतसेननामा श्रीबादरायणमणित्थकुमारसिंहा।'''
 
'''श्रविक्रमार्कंनृपसंसदि सन्ति चैते श्रीकालतन्त्रकवयस्त्वपरे मदाद्या ॥ᅠ२२.९ᅠ॥'''
 
'''नवरत्नानि-धन्वन्तरि क्षपणकामरसिंहशङ्कुर्वेतालभट्टघटखर्परकालिदासा।'''
 
'''ख्यातो वराहमिहिरो नृपते सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य ॥ᅠ२२.१०ᅠ॥'''
 
'''यो रुक्मदेशाधिपतिं शकेश्वरं जित्वा गृहीत्वोज्जयिनीं महाहवे।'''
 
'''आनीय सम्भ्राम्य मुमोच यत्त्वहो स विक्रमार्कः समसह्यविक्रमः ॥ २२.१७ ॥'''
 
'''तस्मिन् सदाविक्रममेदिनीशे विराजमाने समवन्तिकायाम्।'''
 
'''सर्वप्रजामङ्गलसौख्यसम्पद् बभूव सर्वत्र च वेदकर्म ॥ २२.१८ ॥'''
 
'''शङ्क्वादिपण्डितवराः कवयस्त्वनेके ज्योतिर्विदः सभमवंश्च वराहपूर्वाः।'''
 
'''श्रीविक्रमार्कनृपसंसदि मान्यबुद्घिस्तत्राप्यहं नृपसखा किल कालिदासः ॥ २२.१९ ॥'''
 
'''काव्यत्रयं सुमतिकृद्रघुवंशपूर्वं पूर्वं ततो ननु कियच्छ्रुतिकर्मवादः।'''
 
'''ज्योतिर्विदाभरणकालविधानशास्त्रं श्रीकालिदासकवितो हि ततो बभूव ॥ २२.२० ॥'''
 
'''वर्षैः सिन्धुरदर्शनाम्बरगुणै(३०६८)र्याते कलौ सम्मिते, मासे माधवसंज्ञिके च विहितो ग्रन्थक्रियोपक्रमः।'''
 
'''नानाकालविधानशास्त्रगदितज्ञानं विलोक्यादरा-दूर्जे ग्रन्थसमाप्तिरत्र विहिता ज्योतिर्विदां प्रीतये ॥ २२.२१ ॥'''
 
 
 
'''ज्योतिर्विदाभरण''' की रचना ३०६८ कलि वर्ष (विक्रम संवत् २४) या ईसा पूर्व ३३ में हुयी। विक्रम सम्वत् के प्रभाव से उसके १० पूर्ण वर्ष के पौष मास से जुलिअस सीजर द्वारा कैलेण्डर आरम्भ हुआ, यद्यपि उसे ७ दिन पूर्व आरम्भ करने का आदेश था। विक्रमादित्य ने रोम के इस शककर्त्ता को बन्दी बनाकर उज्जैन में भी घुमाया था (७८ इसा पूर्व में) तथा बाद में छोड़ दिया।।
 
== विक्रमादित्य की पौराणिक कथा ==