"अथर्ववेद संहिता": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
वेद टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 3:
'''अथर्ववेद संहिता''' [[हिन्दू धर्म]] के पवित्रतम [[वेद|वेदों]] में से चौथे वेद [[अथर्ववेद]] की [[संहिता]] अर्थात मन्त्र भाग है। इसमें देवताओं की स्तुति के साथ, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं। अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के रज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता जाता हैः
अथर्ववेद का ज्ञान भगवान ने सबसे पहले इस पृथ्वी पर अंगिरा महर्षि को दिया था, फिर उसने वह ज्ञान ब्रह्मा को दिया |
:'''यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः।
:'''निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम्।। (अथर्व०-१/३२/३)।
ये
==परिचय==
|