"अष्टांग योग": अवतरणों में अंतर

→‎धारणा: योगदर्शन पुस्तक
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(घ) '''ब्रह्मचर्य''' - दो अर्थ हैं:
 
:* चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना
:* सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना
 
(च) '''अपरिग्रह''' - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना