"विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर

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अर्थात् विक्रमादित्य के इस संदर्भ में संवाहन का अर्थ है - शत्रुदलन (संवाधन) तथा लक्खम् का अर्थ है - लाखों मुद्राएँ। विक्रमादित्य अपने शत्रुओं के परास्त होने से संतुष्ट होकर अपने सेवकों के हाथ में मुद्राएं देते हैं। इस उध्दरण के अनुसार जिस समय गाथा सप्तशती की रचना हुईं, कवियों में यह परंपरा प्रचलित थी कि विक्रमादित्य नामक एक महान राजा था, जो अपने विजयों तथा उदारता के लिए प्रसिद्ध था। <ref>विक्रमादित्य(संवत् प्रवर्तक).डाॅ. राजबली पांडेय.एम.ए.,डी.लिट्.GOVERNMENT OF INDIA. Department of Archaeological Library.Acc. No.17913</ref>
 
===कथासरित्सागर===
सोमदेव भट्ट कृत कथासरित्सागर भलेही विक्रमी बारहवीं शताब्दी के आरंभ में लिखी गई है लेकिन कई कारणों से उसका ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है। यह कथा गुणाढ्य-रचित पैशाची प्राकृत में लिखी गई बृहत्कथा को आधार मानकर रची गई है। स्वयं सोमदेव ने लिखा है कि '''बृहत्कथाया सारस्य संग्रह रचयाम्यहम्।''' बृहत्कथा का लेखक गुणाढ्य [[सातवाहन हाल]] का समकालिन था। अतः कथासरित्सागर विक्रमादित्य के प्रायः एक शताब्दी पश्चात (ईसा की प्रथम शताब्दी) ही लिखें गये ग्रंथ के आधार पर होने के कारण उसका (विक्रमादित्य संबंधित) उल्लेख ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। कथासरित्सागर में विक्रमादित्य का नाम चार स्थान पर आया है। पहले तो छटे लम्बक के पहले तरंग में उज्जैन के राजा विक्रमसिंह प्रमर का उल्लेख किया है। इस प्रकार से यह बात सिध्द हो जाती है कि विक्रम संवत् के प्रवर्तक विक्रमादित्य प्रमार ही थे, जो ईसा के पूर्व पहली शताब्दी में हो गये। क्योंकि बृहत्कथा और नेपाल की राजवंशावली में भी विक्रमादित्य का उल्लेख है, जो [[चंद्रगुप्त विक्रमादित्य]] से भी सदियों पहले के साक्ष्य हैं। नेपाल के राजा अंशुवर्मन और विक्रमादित्य पँवार दोनों समकालिन व्यक्ति थे।
 
== सन्दर्भ ==