"विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर

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भारतीय परंपरा के अनुसार [[धन्वन्तरि]], [[क्षपनक]], [[अमरसिंह]], शंकु, घटखर्पर, [[कालिदास]], वेतालभट्ट (या ([[बेतालभट्ट]]), [[वररुचि]] और [[वराहमिहिर]] उज्जैन में विक्रमादित्य के राज दरबार का अंग थे। कहते हैं कि राजा के पास "[[नवरत्न]]" कहलाने वाले नौ ऐसे विद्वान थे।
 
कालिदास प्रसिद्ध संस्कृत [[राजकवि]] थे। वे मावलगण में ईसा पूर्व 56-57 के लगभग विक्रमादित्य के दरबार में [[नवरत्न]] थे। नवरत्नों की प्रसिद्ध परंपरा सम्राट विक्रमादित्य परमार ने ही आरंभ की थी। <ref>जयशंकर प्रसाद ग्रंथावली:दूसरा खण्ड. स्कंदगुप्त विक्रमादित्य. पृ. क्र. 386.</ref> [[वराहमिहिर]] उस युग के प्रमुख [[ज्योतिषी]] थे, जिन्होंने विक्रमादित्य की बेटे की मौत की भविष्यवाणी की थी। [[वेतालभट्ट]] एक [[धर्माचार्य]] थे। माना जाता है कि उन्होंने विक्रमादित्य को सोलह छंदों की रचना "नीति-प्रदीप" ("आचरण का दीया") का श्रेय दिया है।
 
'''विक्रमार्कस्य आस्थाने नवरत्नानि'''