"इन्दौर": अवतरणों में अंतर

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→‎प्रमुख ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल: अली गौहर बादशाह ने खजराना में शाह परिवार को 50 बीघा जमीन इनाम में दी थी।
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== प्रमुख ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल ==
[[चित्र:Rajwada Palace, Indore.jpg|right|thumb|300px|इन्दौर का राजवाड़ा]]
[[राजबाड़ा]], [[शिवविलासनाहरशाह पैलेसवली खजराना दरगाह]], [[लालबाग]], [[मल्हार आश्रम]], [[श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर|मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति]], [[गोपाल मंदिर]], [[महालक्ष्मी मंदिर]], [[बांकेबिहारी मंदिर]], [[जनरल लाइब्रेरी]], [[आड़ा बाजार]], [[बिजासन माता मन्दिर]], [[अन्नपूर्णा देवी मन्दिर]], [[यशवंत निवास]], [[जमींदार बाडा]], [[हरसिद्धी मंदिर]], [[पंढ़रीनाथ]], [[टाउन हॉल]], [[शिवाजी राव स्कूल]], [[अहिल्याश्रम]], [[एसपी ऑफिस]], [[छत्रीबाग]], [[ओल्ड मेडिकल कॉलेज]], [[आर्ट स्कूल]], [[होलकर विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर|होलकर कॉलेज]], [[देवी अहिल्या विश्वविद्यालय]], [[एमवाय अस्पताल]], [[माणिक बाग]], [[सुखनिवास]], [[फूटीकोठी]], [[दुर्गादेवी मंदिर]], [[इमामबाडा]], [[गणेश मंडल]], [[बक्षीबाग]], [[खजराना मंदिर]],[[कांच मंदिर]] ,[[मयुर हॉस्पिटल]]श्री ऋद्धि सिद्धि चिन्तामन गणेश मंदिर, कुम्हार मोहल्ला, जूनी इंदौर ,आदि इन्दौर के प्रमुख धरोहरें हैं।
 
* '''राजबाड़ा''' - यह नगर के बीचोबीच स्थित है। १९८४ के दंगों के समय इसमें आग लग जाने से इसको बहुत क्षति पहुँची थी। उसके बाद इसको कुछ सीमा तक पुनर्निर्मित करने का प्रयत्न किया गया।
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* '''कांच मन्दिर''' - यह एक जैन मन्दिर है जिसमें दीवारों पर अन्दर की तरफ कांच से सजाया गया है।
 
* '''नाहर शाह वली दरग़ाह''' - हजरत नाहर शाह वली दरगाह इंदौर की सबसे पुरानी दरगाह है और [[खजराना]] क्षेत्र में स्थित है। यह कालका माता मंदिर से थोड़ी दुरी पर है। नाहर शाह वली दरगाह असल में "हजरत सय्यद गाजिबुद्दीनगाजि नुरूद्दीन इराकी रहमतुल्लाह अलैह" की दरगाह है जो [[इराक]] से आए थे। यह दरगाह लगभग ५००350 वर्ष पुरानी है। इस दरग़ाह में कुछ वर्ष पूर्व2008 छतमें पररंगीन काचकाँच की नक्काशी का कार्य करवाया गया और नयी आस्तीनगुम्बद (दादा दरगाह के पास कीपरिवार दीवारगुजरात )द्वारा बनवाई गई। यह संगमरमर की बनी है। दरगाह का प्रवेश द्वार काफी बड़ा बना है और अन्दर बड़ा -सा मैदानआँगन है। यह दरगाह फ़िलहाल वक्फ बोर्ड के अधिपत्य में है।
सन 1779 से लेकर सन 1967 तक यह दरगाह
[[खजराना]] के [[शाह]] परिवार की मुजावरी और स्वामित्व में रही। [[जावेद शाह खजराना]] ने बताया कि मुगल बादशाह शाह आलम जिसे [[अली गौहर बादशाह]] भी कहा जाता है इन्होंने 50 बीघा जमीन खजराना में दान दी थी । हर वर्ष फरवरी माह में यहां विशाल मेला [[उर्स]] लगता है। फ़िलहाल वक्फ बोर्ड के अधिपत्य में है।
 
* '''काह्न नदी''' - इन्दौर में एक नदी भी बहती है जिसका पुराना नाम कृष्णा या 'कान्ह नदी' है। 'खान नदी', 'कान्ह' का [[अपभ्रंश]] है। इसलिए इसका नाम बदलकर ''काह्न'' रख दिया गया है।किन्तु पानी की कमी एवं जलमल निकासी को इस नदी में छोड़ने के कारण यह अब एक नाले में बदल चुकी है। इसी के किनारे छतरियां हैं। यह स्थान राजबाड़े से लगभग १०० मीटर की दूरी पर है।