"चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर

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'''चन्द्रगुप्त द्वितीय महान''' जिनको संस्कृत में '''[[विक्रमादित्य ६|विक्रमादित्य]]''' या '''चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य''' के नाम से जाना जाता है; वह भारत के महानतम एवं सर्वाधिक शक्तिशाली सम्राट थे। उनका राज्य 380-412 ई. तक चला जिसमें गुप्त राजवंश ने अपना शिखर प्राप्त किया। गुप्त साम्राज्य का वह समय भारत का [[स्वर्णिम युग]] भी कहा जाता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय महान अपने पूर्व राजा [[समुद्रगुप्त]] महान के पुत्र थे। उन्होंने आक्रामक विस्तार की नीति एवं लाभदयक पारिग्रहण नीति का अनुसरण करके सफलता प्राप्त की।
. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य समुद्रगुप्त और दत्तकदेवी का पुत्र था समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद रामगुप्त शासक बना शक़ राजा से पराजित होने के बाद रामगुप्त ने शकों की आधीनता स्वीकार कर ली लेकिन चन्द्रगुप्त ने अपने पिताजी से प्राप्त साम्राज्य की रक्षा के लिए स्त्री भेश धारण कर शक़ राजा का वध कर डाला और गुप्त वंश की गद्धी पर बैठा राजशेखर की रचना में भी इसका उल्लेख मिलता है, उसने शकों पर विजय के उप्लक्ष्य में चाँदी के सिक्के चलवाये और शाकारी की उपाधि धारण की पाटलिपुत्र चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की राजधानी थी चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के उदयगिरि अभिलेख के अनुसार उसका उद्देश्य संपूर्ण पृथ्वी को जीतना था.
 
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने विक्रम सम्वत् का प्रारंभ किय़ा, साँची अभिलेख में उसे देवराज और प्रवर्सेन कहा गया है.विक्रमादित्य ने अपनी दूसरी राजधानी उज्जैनि को बनाया चन्द्रगुप्त ने विद्धवानो को संरक्षण दिया उसके दरवार में नवरत्न निवास किय़ा करते थे जिनमें कालिदास, वराहमिहिर, धन्वंतरि प्रमुख थे उसने शक्तिशाली राजवंशों से वैवहिक सम्बंध स्थापित किए.
 
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय ही चीनी बौद्ध यात्री फह्यान भारत आया था उसके शासन काल में कला, साहित्य, स्थापत्य का अभूतपूर्व विकास हुआ इसलिए चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल को गुप्त साम्राज्य का स्वर्णयुग कहा जाता है.
 
== परिचय ==