"पोंगल": अवतरणों में अंतर
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पहली पोंगल को भोगी पोंगल कहते हैं जो देवराज इन्द्र का समर्पित हैं। इसे भोगी पोंगल इसलिए कहते हैं क्योंकि देवराज इन्द्र भोग विलास में मस्त रहनेवाले देवता माने जाते हैं। इस दिन संध्या समय में लोग अपने अपने घर सेपुराने वस्त्रकूड़े आदि लाकर एक जगह इकट्ठा करते हैं और उसे जलाते हैं। यह ईश्वर के प्रति सम्मान एवं बुराईयों के अंत की भावना को दर्शाता है। इसअग्नि के इर्द गिर्द युवा रात भर भोगी कोट्टम बजाते हैं जो भैस की सिंग काबना एक प्रकार का ढ़ोल होता है।
तमिल मान्यताओं के अनुसार मट्टू भगवान शंकर काबैल है जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लिएअन्न पैदा करने के लिए कहा और तब से पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में मानवकी सहायता कर रहा है। इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैंउनकेसिंगों में तेल लगाते हैं एवं अन्य प्रकार से बैलों को सजाते है। बालों को सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है। बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़ोंकी भी पूजा की जाती है। कही कहीं लोग इसे केनू पोंगल के नाम से भी जानतेहैं जिसमें बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए पूजा करती है और भाई अपनीबहनों को उपहार देते हैं।
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