"वाल्मीकि": अवतरणों में अंतर

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==सन्दर्भ==
{{commonscat|Valmiki|वाल्मीकि}}
{{टिप्पणीसूची}}#भगवान_वाल्मीकि_जी_आश्रम_अमृतसर
 
राजा राम ने जब अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा छोड़ा तो उसके साथ हजारों की संख्या मे सैनिकों को भी भेजा , जो अकसर घोड़े के साथ लाव लशकर भेजा जाता था ।
 
वह सभी जगह घूम कर जब रतनापूरी आया ( जिसका नाम 1577 ई मे गुरू राम दास जी ने अमृतसर रखा ) तो उस जगह सीता पुत्रों लव ओर कुछ ने रोक लिया जिसका सीधे सीधे मतलब था राजा राम की सैना से युद्ध करना ।
 
आपको याद दिला दू उस वक्त मंनूसमृति पूरी तरह लागू थी उसी के तहत यह घोड़ा छोड़ना एक तरह की साजिश ही थी ताकि जहां जहां कोई भी मूलनिवासी रहता है उसको युद्ध के बहाने से मारा जाए , चूँकि रतनापुरी के राजकुमार के साथ हमेशा भील योद्धा साथ रहते थे इसलिए इनको मारना कोई आसान बात नही था ।
 
कथा के मुताबिक घोड़ा दो बालकों ने पकड़ा जोकि राम के ही जुड़वा पुत्र लव ओर कुश ही थे लेकिन मुझे लगता है कि भील योद्धाओ ने ही पकड़ा होगा हा क्योकि वह दोनो वहां रहते थे तो युद्ध मे भी शामिल हुए होंगे ?
 
कहते है बहुत ही भयानक युद्ध हूआ जिसमे राजा राम की सारी सैना राजा राम समेत मारी गई । महलों से निकाली गई सीता को जब यह पता चला कि मेरा पति युद्ध मे मारा गया है तो उसने भगवान वाल्मीकि जी से फरियाद की कि उसके पति को बचा लिया जाए । भगवान वाल्मीकि जी ने अपने तप से अमृत तैयार कीया जिससे राजा राम ओर राजा राम की सैना को ज़िंदा कीया गया ओर बचा हूआ अमृत जहां राजा राम की सैना का आखिरी सैनिक गिरा था वहां दबा दीया गया ।
 
गुरू नानक की एक साखी मे जिक्र है जब वह अपने शिष्य मरदाना के साथ जहां से निकल रहे थे तो मरदाना ने पूछा गूरू जी यह क्या चमत्कार है जहां से मीठी मीठी सुगंध आ रही है पंछी मीठे गीत गा रहे है , तो गूरू नानक जी ने कहा कि जहा किसी वृहमज्ञानी ने अमृत दबाया था जो बहुत जल्दी ही मेरे चोथे बाने द्वारा प्रकट होगा ।
 
जहां अमृत दवा था बहां अमृतसर बसा पर जहां आश्रम था महाराज रंजीत सिंह के बाद मसंदो ( आर्यन) के कब्जे मे हो गया , जिसे गुरू ज्ञान नाथ जी ने बहुत संघर्ष के बाद छुड़ाया , ओर समाज को बताया के तुम असल मे कोन हो ओर तुम्हारा गूरू असल मे है कोन ।
 
== बाहरी कड़िया ==