"युग": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 13:
परिकल्पना की दुनिया के मिथ्क इस वास्तविक विश्व के दुख दर्द से भी अत्याधिक दुखभरा है अत्याधिक उलझन है अत्याधिक व्याकुलता बैचैनी जब मनुष्य की मन परिकल्पना की दुनिया में प्रवेश करती है तब से अंतिम क्षण अर्थात पांच वर्षों तक सुख और चैन पूरी तरहा से जीवन से चला जाता है मात्र सदैव चिंतन मनन परिकल्पना ही रहता है ना जगने पर परिकल्पना खत्म होती है ना निंद्रा में मात्र दिन रात परिकल्पना आती ही रहती है । कहा जाऐ तो भूख गरीबी बीमरी धोखा अपमान मृत्यु से भी भयावह कुछ है तो परिकल्पना की दुनिया की कल्पना अगर वास्तविक दुनिया में सतयुग त्रेता युग व द्वारापाक युग व कालयुग होता तो विश्व का हर मनुष्य व्याकुलता बैचैनी के कारण आत्महत्या कर लेता ।
== युग
मुख्य लौकिक युग '''सत्य''' (उकृत), '''त्रेता''', '''द्वापर''' और '''कलि''' नाम से चार भागों में (चतुर्धा) विभक्त है। इस युग के आधार पर ही '''मन्वंतर''' और '''कल्प''' की गणना की जाती है। इस गणना के अनुसार सत्य आदि चार युग संध्या (युगारंभ के पहले का काल) और संध्यांश (युगांत के बाद का काल) के साथ 12000 वर्ष परिमित होते हैं। चार युगों का मान 4000 + 3000 + 2000 + 1000 = 10000 वर्ष है; संध्या का 400 + 300 + 200 + 100 = 1000 वर्ष; संध्यांश का भी 1000 वर्ष है।
युगों का यह परिमाण '''दिव्य''' वर्ष में है। दिव्य वर्ष = 360 मनुष्य वर्ष है; अत: 12000 x 360 = 4320000 वर्ष चतुर्युग का मानुष परिमाण हुआ। तदनुसार सत्ययुग = 1728000; त्रेता = 1296000; द्वापर = 864000; कलि = 432000 वर्ष है। ईद्दश 1000 चतुर्युग (चतुर्युग को युग भी कहा जाता है) से एक '''कल्प''' याने ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष है। 71 दिव्ययुगों से एक '''मन्वंतर''' होता है।
|