"भगत सिंह": अवतरणों में अंतर
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== व्यक्तित्व ==
जेल के दिनों में उनके लिखे खतों व लेखों से उनके विचारों का अन्दाजा लगता है। उन्होंने भारतीय समाज में लिपि ([[पंजाबी]] की [[गुरुमुखी]] व [[शाहमुखी]] तथा [[हिन्दी]] और [[अरबी]] एवं [[उर्दू]] के सन्दर्भ में विशेष रूप से), जाति और धर्म के कारण आयी दूरियों पर दुःख व्यक्त किया था। उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग पर किसी भारतीय के प्रहार को भी उसी सख्ती से सोचा जितना कि किसी अंग्रेज के द्वारा किये गये अत्याचार
भगत सिंह को हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा [[बांग्ला]] भी आती थी जो उन्होंने [[बटुकेश्वर दत्त]] से सीखी थी। उनका विश्वास था कि उनकी शहादत से भारतीय जनता और उद्विग्न हो जायेगी और ऐसा उनके जिन्दा रहने से शायद ही हो पाये। इसी कारण उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफ़ीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था। [[राम प्रसाद 'बिस्मिल'|पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल']] ने अपनी [[आत्मकथा]] में जो-जो दिशा-निर्देश दिये थे, भगत सिंह ने उनका अक्षरश: पालन किया<ref>''स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास'' (भाग-दो) पृष्ठ-५६६</ref>। उन्होंने अंग्रेज सरकार को एक पत्र भी लिखा, जिसमें कहा गया था कि उन्हें अंग्रेज़ी सरकार के ख़िलाफ़ भारतीयों के युद्ध का प्रतीक एक युद्धबन्दी समझा जाये तथा [[फाँसी]] देने के बजाय [[गोली]] से उड़ा दिया जाये।<ref>''अमर शहीद को नमन'' राष्ट्रीय अभिलेखागार [[नई दिल्ली]] प्रकाशन [[२००२]]
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