"लेखाकरण": अवतरणों में अंतर

महत्व किया है क्योंकि महत्व ही सही है
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Vishnu soni
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लेखाशास्त्र [[गणितीय विज्ञान]] की वह शाखा है जो [[व्यवसाय]] में सफलता और विफलता के कारणों का पता लगाने में उपयोगी है। लेखाशास्त्र के [[सिद्धांत]] व्यावसयिक इकाइयों पर व्यावहारिक कला के तीन प्रभागों में लागू होते हैं, जिनके नाम हैं, लेखांकन, [[बही-खाता|बही-खाता (बुक कीपिंग)]], तथा [[लेखा परीक्षा|लेखा परीक्षा (ऑडिटिंग)]]।<ref>गुडइयर, लॉयड अर्नेस्ट: ''प्रिंसिपल्स ऑफ अकाउंटेंसी'', गुडइयर-मार्शल प्रकाशन कंपनी, [[सेडर रैपिड्स, लोवा]], 1913, पृष्ठ 7 [http://www।archive।org/download/principlesofacco00goodrich/principlesofacco00goodrich।pdf Archive।org]</ref>
 
== महत्वVishnu soni ==
आधुनिक युग में मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का रूप बहुत विस्तृत तथा बहुमुखी हो गया है। अनेक प्रकार के व्यापार व उद्योग-धन्धों तथा व्यवसायों का जन्म हो रहा है। उद्योग-धन्धों व अन्य व्यावसायिक क्रियाओं का उद्देश्य लाभार्जन होता है। व्यापारी या उद्योगपति के लिए यह आवश्यक होता है कि उसे व्यापार की सफलता व असफलता या लाभ-हानि व आर्थिक स्थिति का ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए वह पुस्तपालन तथा लेखांकन (Book-keeping and Accountancy) की प्रविधियों का व्यापक उपयोग करता है। लेखांकन-पुस्तकें बनाकर व्यापारिक संस्थाओं को अपनी आर्थिक स्थिति व लाभ-हानि की जानकारी प्राप्त होती है। यद्यपि पुस्तपालन व लेखाकर्म व्यापारी के लिए अनिवार्य नहीं होते लेकिन वे इसके बिना अपना कार्य सफलतापूर्वक संचालित नहीं कर सकते और उन्हें अपनी व्यापारिक क्रियाओं से होने वाले लाभ या हानि की जानकारी भी नहीं मिल पाती।