"शिव": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 75:
|-
| [[विश्वनाथ]] || काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
|-
| [[त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर]]||त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर, नासिक, महाराष्ट्र
Line 98 ⟶ 97:
|<span style="color:#0000FF"> अशिम केदार </span>|| नेपाल कालान्जर वनखण्ड
|-
| {{font color|blue|yellow|पुरी भुमी के रूप मे शिव ज्योतिर्लिंग::कालान्जर}}||{{font color|black||यद्यपि पुरा ब्रह्माण्ड भागवान शिव का ज्योतिर्लिंग है फिर भी पुराणों में पृथ्वी में भागवान शिव के दो ज्योतिर्लिंग पुरी भुमी के रूप में है (१) कैलाश पर्वत (यह पुरा पर्वत एक ज्योतिर्लिंग है) (२) कालन्जर पर्वत वनखण्ड (यह पुरा पर्वत वनखण्ड दुसरा भुमी ज्योतिर्लिंग है)}}
|-
| {{font color|blue|yellow|शिव पुराण में वर्णित कालान्जर वनखण्ड, भूमि ज्योतिर्लिंग, का संक्षिप्त इतिहास }}||{{font color|black| यह वनखण्ड कत्त्युरी राज्य का प्रमुख तीर्थस्थल था इस व १३ वीं सदी तक कालान्जर कहते थे यहाँ भागवान का मन्दिर है, केदार के पुजारी यहाँ गौ को चराने भी ले जाया करते थे। इसिलिए १८ वीं सदी में आकर इसका नाम गौलेक=गवाल्लेक भी पड़ गया, यहाँ भागवान का मन्दिर है, आदि शंकराचार्य ने यहाँ आकर ७ दिन तक तपस्या कि थी और उन्होंने इस वनखण्ड को शिवपुराण में वर्णित कालान्जर होने की पुष्टि भी की थी, तब से १२-१३ वीं सदी तक इसे कालान्जर कहा जाता था, बाद मे जब कत्युरी राजवंश कमजोर हुआ और इस भुभाग में चन्द राजा आए, चंदों ने सारे महत्वपुर्ण स्थलों का नाम परिवर्तन किया, जहाँ उन्होंने राजधानी बनाई वो भी कालान्जर का ही तल था, उसको उन्होंने बायोत्तर नामाकरण कर दिया, बाद में १७ वीं सदी मे गुरखों ने इस का नाम बदलकर बैतडी कर दिया, और सारा इतिहास छिन्न भिन्न हो गया, कालान्जर मे पुजा करना निषेध किया गया और वहाँ केवल गाय चराने वाले ग्वाले ही जाने लगे, पुरे मन्दिर के रूप मे अवस्थित वनखण्ड को गौचरान मे परिणत कर दिया। पहले चन्द राजाओं ने और बाद में पुर्ण रुप से गुरखो ने, और बाद मे १८ वीं सदी, अंग्रेज-नेपाल के युद्ध के समय तक इसका नाम कालोन्जर हो गया, अंग्रेज नेपाल के युद्ध के बाद गुरखो के दवाब में इसका नाम गोल्लेक बना दिया गया और आज इसे ग्वाल्लेक के नाम से जाना जाता है, यह शिव पुराणों में वर्णित कालन्जर पर्वत ही है, बहुत सारे अध्येता और शोध करने वाले भी इस बात कि पुष्टि कर चुके हैं}}
|