"प्राच्यवाद": अवतरणों में अंतर

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प्राच्यवाद एक विचारधारा है जिसके अंतर्गत पश्चिम द्वारा अट्ठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के दौरान स्वयं को केंद्र में रख
कर अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए पूर्वी
संस्कृतियों की स्थावर संरचना बनायी गयी थी। एडवर्ड सईद मानते हैं कीकि प्राच्यविदों द्वारा ज्ञान की अत्यंत परिष्कृत राजनीति के अंतर्गत [[यूरोकेन्द्रीयता|युरोकेंद्रित]] पूर्वग्रहों का प्रयोग
करके एशिया और मध्य-पूर्व की भ्रांत और रोमानी छवियाँ गढ़ी गयीं ताकि पश्चिम की औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षाओं को तर्क प्रदान किया जा सके।
महत्त्वाकांक्षाओं को तर्क प्रदान किया जा सके।
 
यह उत्तर-औपनिवेशिक सिद्धांत के आधारभूत प्रतिपादनों में से एक है। भारत का अध्ययन करने वाले ज्ञान प्रकाश, निकोलस डिर्क और रोनाल्ड इण्डेन जैसे समाज वैज्ञानिकों, और हामिद दुबोशी, होमी भाभा और गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक जैसे साहित्यशास्त्रियों पर भी प्राच्यवाद की स्थापनाओं का प्रभाव पड़ा है।