"निम्बार्काचार्य": अवतरणों में अंतर

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[[श्रीकृष्ण]] को उपास्य के रूप में स्थापित करने वाले निम्बार्काचार्य वैष्णवाचार्यों में प्राचीनतम माने जाते हैं। [[राधा-कृष्ण]] की युगलोपासना को प्रतिष्ठापित करने वाले निम्बार्काचार्य का प्रादुर्भाव [[कार्तिक]] [[पूर्णिमा]] को हुआ था। भक्तों की मान्यतानुसार आचार्य निम्बार्क का आविर्भाव-काल [[द्वापर]] के अन्त में [[कृष्ण]] के प्रपौत्र [[बज्रनाभ]] और परीक्षित पुत्र [[जनमेजय]] के समकालीन बताया जाता है।
 
इनका जन्म वैदूर्यपत्तन(मुंगीपैठन) में (औरंगाबाद के निकट) हुआ था। श्रीकृष्ण को परमब्रह्म के रूप में मानकर उनकी भक्ति को श्रीनिम्बार्क ने मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया था। इनके दर्शन को द्वैताद्वैतवाद कहा गया तथा इनका सम्प्रदाय सनक सम्प्रदाय के नाम से विख्यात है। इन्हें सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता है।
इनका जन्म निम्बापुर में (मद्रास के निकट) हुआ था। ये रामानुज के समकालीन
 
इनके पिता अरुण ऋषि की, [[श्रीमद्‌भागवत]] में परीक्षित की भागवतकथा श्रवण के प्रसंग सहित अनेक स्थानों पर उपस्थिति को विशेष रूप से बतलाया गया है। हालांकि आधुनिक शोधकर्ता निम्बार्क के काल को विक्रम की ५वीं सदी से १२वीं सदी के बीच सिद्ध करते हैं। सम्प्रदाय की मान्यतानुसार इन्हें भगवान के प्रमुख आयुध [[सुदर्शन चक्र|सुदर्शन]] का [[अवतार]] माना जाता है।
थे तथा सगुण भक्ति के समर्थक थे। कृष्ण भक्ति को निम्बार्क नै मोक्ष प्राप्ति का
 
मार्ग बताया था। ये अवतारवाद में विश्वास करते थे तथा कृष्ण को शंकर का
 
अवतार मानते थे। इनके दर्शन को द्वैताद्वैतवाद कहा गया तथा इनका सम्प्रदाय
 
सनक सम्प्रदाय के नाम से विख्यात है। इन्हें सुदर्शन चक्र का अवतार माना
 
जाता है।
 
मार्ग बताया था। ये अवतारवाद में विश्वास करते थे तथा कृष्ण को शंकर का
 
अवतार मानते थे। इनके दर्शन को द्वैताद्वैतवाद कहा गया तथा इनका सम्प्रदाय सनक संप्रदाय के नाम से विख्यात था इन्हे सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता हैं
 
 
 
इनके पिता अरुण ऋषि की, [[श्रीमद्‌भागवत]] में परीक्षित की भागवतकथा श्रवण के प्रसंग सहित अनेक स्थानों पर उपस्थिति को विशेष रूप से बतलाया गया है। हालांकि आधुनिक शोधकर्ता निम्बार्क के काल को विक्रम की ५वीं सदी से १२वीं सदी के बीच सिद्ध करते हैं। सम्प्रदाय की मान्यतानुसार इन्हें भगवान के प्रमुख आयुध [[सुदर्शन चक्र|सुदर्शन]] का [[अवतार]] माना जाता है।
 
इनका जन्म वैदुर्यपत्तन (दक्षिण काशी) के अरुणाश्रण में हुआ था। इनके पिता अरुण मुनि और इनकी माता का नाम जयन्ती था। जन्म के समय इनका नाम 'नियमानन्द' रखा गया और बाल्यकाल में ही ये [[ब्रज]] में आकर बस गए। मान्यतानुसार अपने गुरु [[नारद]] की आज्ञा से नियमानंद ने गोवर्धन की तलहटी को अपनी साधना-स्थली बनाया।
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थोड़े ही समय के पश्चात् वहाँ वीणा बजाते हुए नारदजी पहुँचे। श्रीनिम्बार्काचार्य ने उनकी पूजा की और सिंहासन पर विराजमान करके प्रार्थना की- जो तत्व आपको श्रीसनकादिकों ने बतलाया था उसका उपदेश कृपाकर मुझे कीजिये। तब नारदजी ने श्रीनिम्बार्काचार्य को विधिपूर्वक पञ्च संस्कार करके श्रीगोपाल अष्टादशाक्षर मन्त्रराज की दीक्षा दी। उसके पश्चात् श्रीनिम्बार्काचार्य ने नारदजी से और भी कई प्रश्न किये, देवर्षि ने उन सबका समाधान किया। इनका संकलन- 'श्रीनारद नियमानन्द गोष्ठी' के नाम से प्रख्यात हुआ। स्वपुत्र श्रीनिम्बार्काचार्य के मुख से आध्यत्मिक ज्ञान प्राप्त करके अरुण ऋषि सन्यास लेकर तीर्थाटान करने लगे। श्रीनिम्बार्काचार्य ने माता को भी इसी प्रकार धर्मोपदेश किया और स्वयं नैष्ठिक [[ब्रह्मचर्य]] व्रत धारण कर भारत-भ्रमण को निकले।
 
निम्बार्काचार्य ने [[ब्रह्मसूत्र]], [[उपनिषद]] और [[गीता]] पर अपनी [[टीका]] लिखकर अपना समग्र [[दर्शन]] प्रस्तुत किया। इनकी यह टीका 'वेदान्त-पारिजात-सौरभ' (दसश्लोकी) के नाम से प्रसिद्ध है। इनका मत ‘द्वैताद्वैत’‘स्वाभाविक द्वैताद्वैत’ या ‘भेदाभेद’‘स्वाभाविक भेदाभेद’ के नाम से जाना जाता है। आचार्य निंबार्क के अनुसार जीव, जगत और ब्रह्म में वास्तविक रूप से भेदाभेद सम्बन्ध है। निंबार्क इन तीनों के अस्तित्व को उनके स्वभाव, गुण और अभिव्यक्ति के कारण भिन्न (प्रथक) मानते हैं तो तात्विक रूप से एक होने के कारण तीनों को अभिन्न मानते हैं। निम्बार्क के अनुसार उपास्य [[राधाकृष्ण]] ही पूर्ण ब्रह्‌म हैं।
 
सम्प्रदाय का आचार्यपीठ श्रीनिम्बार्कतीर्थ,किशनगढ़, अजमेर,राजस्थान में स्थित है।
डॉ॰ [[सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] ने अपनी सुविख्यात पुस्तक ‘भारतीय दर्शन’ में निम्बार्क और उनके वेदान्त दर्शन की चर्चा करते हुए लिखा है कि निम्बार्क की दृष्टि में [[भक्ति]] का तात्पर्य उपासना न होकर प्रेम अनुराग है। प्रभु सदा अपने अनुरक्त भक्त के हित साधन के लिए प्रस्तुत रहते हैं। भक्तियुक्त कर्म ही ब्रह्मज्ञान प्राप्ति का साधन है।
 
श्रीनिम्बार्कतीर्थ (सलेमाबाद) (जिला [[अजमेर]]) के राधामाधवश्रीराधामाधव मंदिर, [[वृन्दावन]] के निम्बार्क-कोट, नीमगांव (गोवर्धन) सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में निम्बार्क जयन्ती विशेष समारोह पूर्वक मनाई जाती है।
 
==जन्म कथा==