"अवेस्ता": अवतरणों में अंतर
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== इतिहास ==
बहुत प्राचीन काल में आर्य जाति अपने प्राचीन आवास "आर्य वजेह" (वर्तमान समय में यह सिद्ध हो चूका है कि भारत ही आर्यों का मूल देश है आर्य भारत के ही मूल निवासी थे) में रहा करती थी जो सुदूर उत्तरी प्रदेश में अवस्थित था "जहाँ का वर्ष एक दिन के बराबर" होता था। उस स्थान को निश्चयात्मक रूप से बतला पाना कठिन है। बाल गंगाधर तिलक ने अपने ग्रंथ "दि आर्कटिक होम" में इस भूमि को उत्तरी ध्रुव प्रदेश में बतलाया है जहाँ से आर्यों ने पामीर की श्रृखंला में प्रवास किया। बहुत समय पर्यंत एक सुगठित जन के रूप में वे एक स्थान में रहे, एक ही भाषा बोलते, विश्वासों, रीतियों और परंपराओं का समान रूप से पालन करते रहे। जनसंख्या में वृद्धि तथा उत्तरी प्रदेश के शीत तथा अन्य कारणों ने उनकी श्रृंखला छिन्न-भिन्न कर दी। आर्यजन के विविध कुलों में दो कुलों के लोग, जो आगे चलकर भारतीय (इंडियन) और ईरानी शाखाओं के नाम से विख्यात हुए, पूर्वी ईरान में दीर्घ काल तक और निकटतम संपर्क में रहे। आगे चलकर एक जत्थे ने हिंदूकुश की
ईरान और भारत दोनों ही देशों में लेखन के आविष्कार के पूर्व मौखिक परंपरा विद्यमान थी। अवेस्ता ग्रंथों में मौखिक शब्दों, छंदों, स्वरों, भाष्यों एवं प्रश्नों और उत्तरों का उल्लेख हुआ है। एक ग्रंथ (यस्न, 29.8) में अहुरमज्द अपने संदेशवाहक ज़रथुस्त्र को वाणी की संपत्ति प्रदान करते हैं क्योंकि "मानव जाति में केवल उन्होंने ही दैवी संदेश प्राप्त किया था जिन्हें मानवों के बीच ले जाना था।" ज्ञान के देवता ने उन्हें सच्चा "अथ्रवन" (पुरोहित) कहा है जो सारी रात ध्यानावस्थित रहकर और अध्ययन में समय बिताकर सीखे गए पाठ को जनता के बीच ले जाते हैं। प्राचीन भारत के ब्राह्मणों की तरह अथ्रवन ही प्राचीन ईरान में शिक्षा तथा धर्मोपदेश के एकामत्र अधिकारी समझे जाते थे। इन पुराहितों में वंशानुगत रूप में धर्मग्रंथों की मौखिक परंपरा चली आया करती थी।
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