"कुमारपाल": अवतरणों में अंतर

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यही नहीं हथकरघा तथा अन्य हस्तकलाओं का भी कुमारपाल ने बहुत सम्मान और विकास किया। कुमारपाल के प्रयत्नों से पाटण पटोला (रेशम से बुना हुआ विशेष कपड़ा तथा साड़ियाँ) का सबसे बड़ा केन्द्र बना और यह कपड़ा विश्वभर में अपनी रंगीन सुंदरता के कारण जाना गया।<ref>{{cite web |url=http://www.nif.org.in/patan|title=Adding life to a centuries’ old dyeing art-Patan|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=|publisher= निफ़.ऑर्ग.इन.|language=अंग्रेज़ी}}</ref> अनेक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखे गए और गुजरात जैन धर्म, शिक्षा और संस्कृति का प्रमुख केन्द्र बन गया।<ref>{{cite web |url=http://www.jaintirths.com/general/jainpatrons.htm|title=Jain Tirths
|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=एचटीएम|publisher=जैनतीर्थ्स.कॉम|language=अंग्रेज़ी}}</ref> उसने पशुवध इत्यादि बंद करवा के गुजरात को अहिंसक राज्य घोषित किया। उसकी धर्म परायणता की गाथाएँ आज भी अनेक जैन-मंदिरों की आरती और मंगलदीवो में आदर के साथ गाई जाती हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.geocities.com/bhavna_shah/AratiMangalDivo.htm|title=Ärati & Mangal Deevo
|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=|publisher=भावना शाह|language=अंग्रेज़ी|archiveurl=http://web.archive.org/20040914091138/www.geocities.com/bhavna_shah/AratiMangalDivo.htm|archivedate=14 सितंबर 2004}}</ref> इन्होंने स्वर्गीय महाराजा सिद्धराज जयसिंह जी द्वारा अपमानित राजपूत सरदार जो की आबू नरेश महाराजा विक्रमसिंह परमार के राज में सन 1191 से 1199 घांची जाति ग्रहण किये हुए ठहरे थे, उन सभी राजपूत सरदारों को सन 1199 में उन्होंने सभी 13 राजपुत जातियों के सरदारो को अहिलनवाड़ा बुलाकर पुनः रजपूती में लौटने का आग्रह किया गया पर उनमें से कुछ सरदार पुनः अहिलनवाड़ा जाकर अपनी मूल रजपूती पहचान ग्रहण कर ली व बाकी सरदारो ने क्षत्रिय घाँची जाति के रूप में राजपुताना में ही रहना स्वीकार किया जब कुमरपाल के राज्य की सीमा जैसलमेर तक लगने लगी तो उन्होंने अपने द्वारा स्थापित क्षत्रिय सरदारो के लिए मारवाड़ रियासत के पाली कस्बे में उन क्षत्रिय सरदारो के लिए इष्टदेव सोमनाथ महादेव मंदिर का निर्माण अपने राजकोषीय व्यय से करवाया ताकि सभी 13 जातियों के सरदार अपने इष्टदेव को राजपुताना में रहते हुए याद कर सके ।
|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format=|publisher=भावना शाह|language=अंग्रेज़ी|archiveurl=http://web.archive.org/20040914091138/www.geocities.com/bhavna_shah/AratiMangalDivo.htm|archivedate=14 सितंबर 2004}}</ref>
 
कुमारपाल चरित संग्रह<ref>{{cite web |url=http://www.jainlibrary.org/jlib/Kumarpal_Charitrasamgraha.pdf|title=कुमारपाल चरित संग्रह|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format= पीडीएफ़|publisher= जैनलाइब्रेरी.ऑर्ग|language=}}</ref> नामक ग्रंथ में लिखा गया है कि वह अद्वितीय विजेता और वीर राजा था। उनकी आज्ञा उत्तर में तुर्कस्थान, पूर्व में गंगा नदी, दक्षिण में विंद्याचल और पर्श्विम में समुद्र पर्यत के देशों तक थी। राजस्थान इतिहास के लेखक कर्नल टॉड ने लिखा है- 'महाराजा की आज्ञा पृथ्वी के सब राजाओं ने अपने मस्तक पर चढाई।' (वेस्टर्न इण्डिया - टॉड) वह [[जैन धर्म]] के प्रसिद्ध [[आचार्य हेमचंद्र]] का शिष्य था<ref>{{cite web |url=http://www.jainworld.com/education/juniors/junles23.htm |title= ACHARYA HEMACHANDRA|access-date=[[१ फरवरी]] [[२००८]]|format= एचटीएम|publisher=जैनवर्लड.कॉम|language=अंग्रेज़ी}}</ref> वह जैन धर्म के प्रति गहरी आस्था रखता था और जीवों के प्रति दयालु तथा सत्यवादी था। इस परंपरा के अनुसार उसने अपनी धर्मपत्नी महारानी मोपलदेवी की मृत्यु के बाद आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत पालन किया तथा जीवन में कभी भी मद्यपान अथवा मांस का भक्षण नहीं किया। मृत्यु के समय उसकी अवस्था ८० वर्ष थी।